विज्ञान और आविष्कार | Vigyan Aur Avishkar

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Vigyan Aur Avishkar by सुखसम्पत्तिराय भंडारी - Sukhasampattiray Bhandari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ण्पू ) 'विद्युत्‌ ओर घुम्घक शक्तिया से उसका सम्पन्ध क्‍या है? यद्यपि उस समय चे समुद्रीयतार ( ००९३४ 1०७ ९४)०४ए७॥ ) निकाल चुके थे । दिग्दशेकयन्त (८०॥७१४७) में खुधार करने का अंय उन्हें प्राप्त दो चुका था | हग्य 10100) के शुण स्वभाव पर ये कई लेप लिस चुके थे | इसके लिये विज्ञान ससार में “उनकी कीर्तिध्वजा बडे जारो से उडने लग गई थी | पर लाई : केलव्हिन के इससे बिलकुल सम्ताप नहीं हुआ । उनका ते यद पक्ष विश्यास था कि जब आाऊाश (०७०) और द्रब्य (फव॥९४) करा सम्बन्ध मालूम हा जायगा, तय ही मानव जाति प्रकृति के उस गज़ाने में प्रधिष्ठ दा सकेगी, जहा क्रि उसके रद्दस्थो का दिग्दर्शन हा सकता है । सचमुच लार्ड फेलब्हिन जले महासुभाव हमेशा ही विद्यार्थी की दशा में रहते दे। थे हमेशा सौसना चाहते है। 'फ्याफि ऐसे महानुभाव यह यात भली भाति समभते है फ्रि फिसी सिद्धान्त फा दल हे। जाने से, फ्रिसी तत्व का आविष्कार हा जाने से यह नहीं समभना चाहिये कि ज्ञान फी परमावधि हा चुकी । ऐसी अ्रवत चीजे ह॑ जिनके विपय मे हम कुछ नहीं जानते | इसी विचार के फाग्ण ला केलन्हिन जैसे जिशासु दमेशा विद्यार्थी ही का जीवन व्यतीत करते है । ये नई नई बाता की साज़ में हमेशा लगे रहते है । शरीर की दृष्टि स विचार जरने से मनुष्य इस विशाल आर पिगट चिणष्च का एक खूद्मानि सच्म अणु है । प उसके ओऔतर मन कहलानेवाला एक ऐसा पदार्थ दे जे उसे हमेशा ऊचा उठछाता ग्दता ह। वह बडे बर्य के साथ स्वर्ग के शियर पर पहुचना चाहता है | विशाल ओर विराद्‌ विश्य का उसे जा कुछ ज्ञान प्राप्त हुआ हैं, वह अश्रन्यन्त मर्यादित श्रार




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