श्री जाति भास्कर | Sri Jati Bhaskar

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : श्री जाति भास्कर  - Sri Jati Bhaskar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about ज्वाला प्रसाद - Jwala Prasad

Add Infomation AboutJwala Prasad

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
भाषाटीकालंवलितः | (७) जिस पुरुषका विवरान किया गया, उसकी कितने प्रकास्की कल्पना हुई, अर्थात्‌ प्रजापति द्वारा जिस समय पुरुष विभक्त हुए तो उनको कितने भागोंमें विभक्त किया गया, इनके मुख बाह ऊछू और चरण क्या कहें बाते हैं! ( उत्तर ) ब्राक्षजजाति इस पुरुषके मुखर, क्षत्रिय जाति भुजासे, वेश्यजाति ऊछुद्वयसे ओर शूद्रजाति दोनों चरणोंसे उत्पन्न हुईं, इस कारण ब्राह्मणादि चार जाति परमात्माके मुख, भुजा, ऊछ ,और चरण कहाते हैं। पुरुष- सूक्तमें जगत्‌की उतत्तिका प्रकरण है, सब चराचरोंकी उत्पत्तिका इसमें प्रसंग है, इसकारण यहां कहपना शब्दसे उत्पत्तिका ही अर्थ लिया जायगा न कि अलंकारकी कह्पनाका अथ।!. अन्यत्र भी वेदमें उत्पत्तिका ही अर्थ आया है यथा “सूर्याचन्द्रमसौ घाता यथापूरवमकल्पयत्‌' ऋ., मं, १० सू, १९१. में, ३ अर्थात्‌ खूय चन्द्रमा जैसे विधाताने पूवे कल्पमें बनाये थे. वेसे ही इस्र कत्पमें बनाये हैं | यजुर्वेद अध्याय .३१ अथर्ववेद कं० १९।॥६। & में भी: पुरुषतक्त है। ऋक॒संहिताके साथ मंत्रोंका सत्र. अंश मिलता है, केवल अथर्वमें ऊरूके. स्थानमें “मष्यं तदस्य यद्वेश्य” इस प्रकार पाठान्तर देखा जाता है। कृष्णयजुर्वेद तैपिशीय, सेहितामें कुछ विशेषताके साथ लिखा है। . हि प्रजापतिरकामयत प्रजायेयेति स मुखतब्िवृर्त निरमिमीत तममिदेवान्वस जत गायत्री छन्दो रथ॑न्तरं साम आाह्मणो मनुष्याणामजः पश्मनां तश्मात्ते ुख्या सुखतो छसृज्य- न्तोरसो बाहुभ्यां पश्चदर्श निरमिमीत तंमिन्द्रों देवतांन्व- सज्यत तिश्ुपकन्दों वृहत्साम राजन्यों मनुष्याणामविः पशुनां तस्मात्ते वीयोवन्तों वीर्याध्यसज्यन्त, मध्यतः सप्त- : देश निरमिमीत ते विश्वेदेवा देवता अन्वसृज्यन्त जगती छन्‍्दो वेहपं साम वैश्यो मनुष्याणा गावः पश्ञनां तस्मात्त आद्या अन्नधानाध्यसज्यन्त तस्माद्धयांसोन्‍्योभूयिष्ठा हि देवता अन्वसज्यन्तपत्त एकरविशं निरमिमीत तमलुष्ठ (छ॑न्दः , अन्वसज्यत वेराजे साम शूद्रों म॑नुष्याणामश्व पंशुनां, तस्मात्तो भूतसंकमिणावश्वश्र शूद्श्व तर्मांच्छूदों यज्ञेना- . बकलतो नहि देवता अन्वसृज्यतः तस्मात्‌पादाबुपजीवतः . 'पत्तो हमृज्यताम्‌ | तैत्तिीिय> 911.181 ९... .




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now