पञ्च - पात्र | Panch - Patra

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Panch - Patra by ब्रजराज - Brajraj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शत ] १३-अज्ञात कहां है नाथ तुम्हारा घाल। खोऊ फिरा सर देख लिया + अब में दोंगया दृताश।॥ मुये व्यर्थ श्रम टेस जद प्रति करती है. उपहास । वाया. जिसका पता. नहीं वह रहता. उसके पास वा ब्रात काल पथ लाती हैँ उसका... इुछ. साोदेश | मूक प्रटति को ही कह जानी उसका आदिेदा ॥ छ्ण भर मे नये जड़ में हो जाता चैतवय विकास ) खूक्छो पर विक्रसित पूल्टों का होता हारा किस 1! हँस हंस कर जट की तक करता सानत.. फिटार ) मर खर्गों के अहग्य के भर जाता हैं. हसारा लिए मपाहआऋार में सक ऊ मरद हो हा. एाओआ 1 कई 73




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