कथक नृत्य | Kathak Nritya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १६ ) है उनका जन्म हुये मुश्किल से ४०० वर्ष हुये होंगे । कथक सत्य की कथावस्तु तो सगबान कृष्ण के जीवन लीला से संबन्धित है पर उनका प्रस्तुतीकरण लौकिक नायक के रूप में ही. होता है । ईशोपासना कह दैने. मात्र से ही इस नृत्य में. ऐसी कोई वस्तु दिखाई नहीं पढ़ती बस्तुतः उसका मुख्य ड्देरय लोक मनोरंजन ौर आात्माभिव्यंजन है। कथक चत्य में छृष्णेतर कथानकों का भी समावेश हुआ है । इस समय कथक चृत्य के दो मुख्य घराने हैं--जयपुर झौर लखनऊ । मूल रूप में दोनों की प्रदर्शन शैलियाँ एक ही हैं पर उनमें सूदम मेद भी है । इसका बिशंद विवेचन पुस्तक के एकादश अध्याय में किया गया दै। - शास्त्रीय चृत्य के झतिरिक्त सेव से ही एक झन्य प्रकार का भी चृंत्य रहा है जिसे लोक चृत्य कहा जाता है। लोक चूत्य की हजारों की संख्या में शैलियां हैं। हर प्रदेश श्ौर हर जाति के झलंग-झलंग लोक चृत्य हैं । लोक नृत्यों में कोई संस्कार तथा शिक्षण पद्धति नहीं है किन्तु इनमें परस्पराद्मों के प्रति झामद जरूर है । कुछ विद्वानों का मत हैकि लोक चृत्यों से ही शास्त्रीय नृत्यों का विकास हुआ है । इस कथन में काफी सचाईं है। लोक चृत्यों के श्रतिरिक्त झाधनिक नृत्य के नाम से भी छाजकल एक नई नृत्य शैली मानी जाठी है जिनका प्रदर्शन झक्सर चलचित्रों में होता है । बस्तुतः यह लोक चृत्य शास्त्रीय सत्य और विदेशी चृत्यों का एक बेढंगा मिश्रण है । ..... (श भरत नाय्यशास्त्र पर एक संक्षिप्त टिपणीं लिखिये । (२) दृत्य श्रौर कथक दृत्य के जन्म श्रौर विकास पर एक लेख बलिखिये । के




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