कंकर | Kankar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
342
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)डा ड़ 7 की.
तक उनके बारे मे बात होती रहो 1. फ
“हमारे दल और दृष्टिकोण के बार्दे मे आपकी क्या राय है?” बातो ७
ही बातो मे अशोक ते पूछा ।
“राय से क्या मतलब ?” जगदीजक्ष ने ततिक हक कर कहा +
“हप्रने जो कुछ किया, क्या आप उसे ठीक और उपयोगी समझते
हैं?”
“उपयोगी तो जरूर है। वर्तेमान आन्दोलन और देश की जागृति में
तुम लोगो का बडा हाथ है। तुम लोगों क सकल्प, साहम ओर त्याग ने
जनता को नया जीवन प्रदान क्या है)
“आप इस आदालन को हमारे काम का नतीजा समभत्े हैं ?”
“तुम्हारे ही काम का नतीजा तो नहीं कह सकते। दुनिया भर के
आर्थिक मदवाड़े का असर है। देश मे भूख ओर वकारी है। पढे-लिखे
लोगी को काम नही मिलता । अनाज के दर गिर गये हैं। गेहू सवा रुपया
और ज्वार-बाजरा दस-बारह आने मन बिकता है। किसान के दीज के दाम
भी पूरे नही होते । मालिया और लगान अब भी वही है। देश-व्यापी
आर्थिक सकट और बेकारे का नतीजा यह आदोलन है।तुम लोगो के
उदाहरण से जनता को प्रेरणा मिली है, जागृति फंली है।'
अशोक चुप हो गया, सोचने लगा * वह् उन लोगो की, और किसान
जनता की बात सोच रहा था जो भूख, देकारी और आधिक सकट से
पीडित थी । थोडी देर चुप रहकर वह फिर बोला--
क्या सिफ नमझ-कानून तोड़ने से ही देश को आज़ादी मिल
जायेगी २!
“हमारा खयाल है ! जगदीश बोला--“आदोलन शुरू करने का यह
तो एक ढग है। घीरे-धीरे वह मजदूरो, क्सानों मे ओर सारे दश में
फैलेगा 1
भ्लेकिन यह बताइये । अज्ञोक बोला “कही फिर चोरो-चौर! जैसी
घटना हो और आदोलन को फिर एकाएक बन्द वर दिया जाय २?!
जगदीश सकपकाया। उसे इस बात की आद्यका नही थी, वाहर रहते
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