पूर्वा | Purva
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
165
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)21 ।
नई हिन्दी कविता की यह चित्य अवस्था है कि उसने अपनी पूर्ववर्तों काव्य-परंपरा
के प्रति निषेघ-बृत्ति अपना ली है | किसी युग-विशेष की वह प्रतिक्रिया हो सकती है
ओर उसका अस्वीकोर भी समझ में आता है, पर अपने अक्षय वाणि-कोश अथवा
भारतीय काव्य-परंपरा का सम्पूर्ण विस्मरण एकांगी, अनीप्सित ओर केवल नव्यापेक्षी
मनोदृष्टि का परिणाम ही कहा जायगा। अपने उत्तराधिकार का सर्वोशिक परित्याग
उनके लिए श्लाध्य है, जिनके पास द्ूटा तवा! और “ूटी कठोती? ही रही हो, पर
जिनकी काव्य-धारा विश्व-साहित्य का श्र गार है और राष्ट्रीय संस्कृति का गौरब, उनका
नवार्जन गंगा-यमुना का संगम तो हो सकता है, नौ-आबाद जमीन नहीं, सुदामा की
त्रिभुवन-लक्ष्मी भी नहीं | क्या यह भी वह कारण नहीं है, जिप्का ग्रतिफल नये काव्य
की असंवेदनशीलता, अतितोद्धिकता ओर विजातीय उपकरणों की अग्राह्मता बन गया है ?
इस संदर्भ में यह उपयुक्त प्रतीत हुआ कि हिन्दी के प्राचीन काव्य का एक संग्रह
प्रस्तुत किया जाय, जो सभी मध्य-युगीन काव्य-बाराओ्ों का पर्चिय करा सके, जिसमें
भारतीय काव्य-परम्पराओं का सोंदर्य उद्वायित हो जाय और जिसके द्वारा अपना वाणी-
वेभव समस्त सीमाओं तथा सम्यूण उत्कृष्टताओं के साथ महत्व-ज्ञापकत जान पड़े | इसी
लक्ष्य को दृष्टि में रखकर 'पूर्वा! का सम्पादन किया गया । इसमें सभी प्राचीन काव्य-
धाराओं के उत्कृष्ट तथा प्रतिनिधि कवियों की मम-स्पर्शों तथा उच्च-कोटि की काव्य-श्री
संकलित करने का आयास हुआ । अवश्य ही किसी प्रतिनिधि वीर-गाथा-कार को नहीं
रखा गया । उसका कारण यही है कि चंद, नरपति आदि की स्वना विशेष अध्ययन
का विषय है। सोंदय-संवेदन अवस्था रसास्वादन का संस्कार करने वाले काव्य-संग्रह के
लिए वह अनुपयोगी दिखाई पड़ी | इस पुस्तक का संगृदन इसी उद्देश्य से हुआ कि प्राचीन
काव्य का श्रेष्ठत्व अविज्ञात क्यों होता जाय १ नई कविता के. काव्यत्व... पर जो प्रश्न-चिह्न
है, उसे परम्परा-शान के अभाव में क्या हटाया-जा सकता है-ह- ./- #३#
आधुनिक काव्य का प्रकषत और सौंदर्य पूर्वा! के संपादकों को अविदित नहीं है ।
उनकी समीक्षा-पुस्तकें तथा “नव-मारतीः काव्य-संकलन इसके प्रमाण हैं । वे केवल
नव्यतम काव्य-परिणति को गौरबमयी नहीं समझते और किसी सीमा तक उसे अ्र-राशटीय
भी मानते हैं। उन्हें विश्वात है कि काव्य का अस्तित्व स्थायी होता है और सत्ता
सावभौम ।
नये विद्यार्थी प्राचीन काव्य के सोंदय का सम्यक् आकलन करने में अकृतकार्य हो
है हैं। संभवतः उनके साहित्यिक संस्कार चेतना-शूत्य होने का उपक्रम कर रहे है| क्या
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