जैन शिलालेख संग्रह भाग - 2 | Jain Shila Lekh Sangrah Bhag - 2

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Jain Shila Lekh Sangrah Bhag - 2  by विजयमूर्ति शास्त्राचार्य - Vijaymurti Shastracharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्ध्‌ जैन-शिलालेख-संग्रह अनुवाद--गोती (गोप्ती माता ) के पुत्र इृद्रपाल ( इन्द्रपाछ ) के अहेन्तोंकी पूजाके लिये प्रतिमा [78), 11, 9' जाए, ४ 9. ] १९ ह गिरनारः--संस्कृत । | विक्रमसंवत्‌ ७८ | हुमदके पवित्र स्थानके आइ्जनमें वृक्षेके नीचे एक चोकोर चबूतरा हे । उसके किनारेपर निम्नलिखित लिखा हुआ है;--- सं० ५८ वर्ष चेत्र वदी २ सोमे धारागजञ्ञे पं० नेमिचन्दशिष्य पंचाणचदमर्ति अनुवाद--संवत ७८ के वर्षमें, सोमवार, चेनत्र वदी २ को, धारागअमें नेमिचन्द्रके शिष्य पंचाणचंदकी मूर्ति । [081, ४ ए1, 9. 357, ४ 20] !्र मथुरा--प्राकृत । ( बिना कालनिर्देशका ) १. भदंतजयसेनस्य आंतेवासिनीये २. धामधघोषाये दानो पासादो |॥] अनुवाद--भद्न्‍त जयसेनकी शिष्या धमधोषा ८ धर्मधोषा ) के दानस्वरूप यह मन्दिर हे।?” [9), 11, |' जाप, +' 4 ] १३ 'मथुरा--प्राकृत । भगवा नेमेसो भग-- अलुवाद--“भगवान नेमेस ८ नेगमेष ), भगवान *** (&ा, वा, ४? झा प्र, ४? 6]




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