लज्जा - हरण | Lazza - Haran
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
148
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अपने को ही लगता है, मैं जिसे भला मानकर, उसपर विश्वास
करता हूं, उसके सचमुच भले होने का मेरे पास क्या प्रमाण है ? जिसे
मैं बुरा समकता था, श्राज वही समाज को बाहवाही लूट रहा है । सबका
सिरमौर बना हुआ है ।
इसलिए मैं इस फैसले पर पहुचा हूं कि हम भले-बुरे का विचार
तभी करने बैठते हैं जब हमारे पास उसे साबित करने का कोई ठोस तर्क
नही होता । इसके झलावा इस दुनिया में क्या सचमुच ऐसा कोई विचा-
रक है, जो सही-सही विचार करता हो ? मुझे ऐसा विचारक कही नहीं
दिखा ।
खेर, भते-बुरे का विचार करना समाजशास्त्रियों के जिम्मे है। मैं
तो रप्तिकों के लिए कहानी लिखता हूं ॥ प्रतः मेरे लिए पाठक ही भसली
विचारक हैं | प्रगर यह कह्दानी उन्हें पसन्द भ्रा जाए, तो मेरी सारी मेहनत
भौर रात-रात भर जागता सचमुच सार्थक हो जाए।
सुना है, तापस की झिन्दगी लखनऊ से ही शुरू हुई थी । कलकत्ते
से बिना टिकट सफर करते हुए तापस जब लखनऊ स्टेशन पर उतरा,
उस वक्त भूख के मारे उसके पेट में चूहे कूद रहे थे । न उसकी जेब में
फूटी कौड़ी थी, न शरीर मे दम १
तापस झपती कहानी सुनाने लगा :
उस दिन भ्रगर मैं सड़क के किनारे दम तोड़ देता तो शायद तमाम
भमेलों से छूट्टी मिल जाती | लेकिन विधि का विधान तो कुछ शोर था।
दरभसल हमारा जन्मदाता बेहद परिहास-रमसिक देवता है । उसे इन्सान
से परिहास करने में बडा मजा भ्ाता है। हैरत की बात यह थी कि उसे
दिल्लगी करने की सूफी भ्रौर वह मुम जैसे गरीब से मजाक कर बैठा ।
जब मैं रास्ते पर सड़ा-खड़ा इस सोच में पड़ा या कि भव किघर
जाऊं, क्या कछं, क्या खाऊं--उस समय सूरज देवता मेरे तिर पर एक
सौ वीस डिग्री तापमान वरसा रहे थे, जिसे कहते हैं लू । रास्ते में इक्के-
इुक्के लोग । उस समय मुझे सिफे एक ही विन्ता थी कि इस बवत मैं
किसे पकड़, कौन मुर्के प्राश्नय देगा !
इन्मान जब मुसीबत में होता है, तो उसे भनेजुरे का ज्ञान नही
३ न हा द््
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