ऋषभदेव एक परिशीलन | Rishabhadev Ek Parishilan

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Rishabhadev Ek Parishilan by देवेन्द्र मुनि शास्त्री - Devendra Muni Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्र ऋषभमंदेव_ एक परिशीलन 1२] उत्तरकुर में मनुष्य थहाँ से धन्ना साथवाह का जीव आयु पूरा कर दान के स्‌ उतरकृरुसत्र में मनुष्य हुआ। [३] सोघम देवलाक वहाँ से भी साग्रुपूण हान पर धन्ता साथवाह का जीव ९ मे टेव रूप मे उत्पन्न हुआ । २४ सो अहाउय पालइत्ता तेण दाणफलण उत्तरकुरुमणुतो --आवश्यक घूणि (ज्) तेण दाणफ़लण उत्तरकुराए मणुसो जाओ | +- आवश्यक ह्यारिभद्रीमावत्ति (ग) सा ये अहाउय पालित्ता काक्षमास्रे काल किचा तेण उत्तरकुराए मणूसा जातो + -+आवश्यक मल वृत्ति (घ) कालन त्रत्र पूर्णायु कालधममुपागत । आस्थितकान्तसुपमेपूत्तेत._ कुरुष्वसौ ॥ सीतदानथ त्तरतदे ज॑म्पूवृक्षानुयुवत । उत्पेदे युग्मधमेंण. मुनिदानप्रभावत 1॥॥ --त्रिपष्ठि ११1२२६-४ २५ (क) ततो आउक्शएण उच्दट्टिऊणं सोहम्मेकप्पे तिपलिओ देवो चाबी । -+आवश्यक घूथि (थ) ततों आउवलए सोहम्मे कप्पे देवों उववश्नों । “आवश्यक हारिभद्रीयावृत्ति प (य) जावइ्यक भूल छू प (शछा३ (पे) मिधुनायु' पालयित्वा धनजीवर्ततश्च स | प्राग्य मदानफ़लत सौधरमें तिदशोमवत्‌ 1 +-त्रिपष्छि




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