काव्यमीमांसा आलोचना व निबन्ध | Kavyamimansa Aalochana Nibandh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
29 MB
कुल पष्ठ :
376
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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अतः यह सम्भव है कि वे अन्तिम जीवनमें इसे पूर्ण न कर सके हों। कुछ प्रमाणोंसे यह
माना जा सकता है कि वे इस ग्रन्थको पूणण कर चुके थे; किन्त हमारे दुर्भाग्ससे उसका शेष
अंश प्राप्त न हो सका।
राजशेखरने कवि-रहस्य नामक प्रकरणमें रीति, रस, अलंकार तथा अन्यान्य विषयोंके
प्रसंगोंपर लिखा है कि इसे अगले प्रकरणमें कहेंगे । जेसे-- शास्त्रनिर्देश प्रकरणमें अलंकारको
वेदका सातवाँ अज्ञ मानते हुए वे कहते हैं कि अर्लंकारोंकी व्याख्या आगे करेंगे । रीतियोंके
सम्ब्नन्धमें भी उन्होंने ऐसा ही कहा है कि उन्हें आगे कहेंगे। मन्त्र-सिद्धि भादि द्वारा
कवित्व प्राप्तिके सम्बन्धमें भी उन्होंने लिखा है कि इस विषयको ओऔपनिषदिक प्रकरणमें
कहेंगे | इन बातोंसे यह सिद्ध होता है कि या तो वे समस्त ग्रन्थकी रचना कर चुके होंगे या
उसका विषय-विभाग करके ही रह गए हों ।
इसके अतिरिक्त अलंकारशेखर नामक अलंकार भ्रन्थकी एकादश मरीचिमें राजशेखरके दो
उद्धरण प्राप्त होते हैं, जिनमें एक उभयालंकारिक प्रकरणका प्रतीत होता है? और दूसरा उनन््नीसवीं
मरीचिमें समस्यापूर्ति विषयक उद्धरण मिलता है; जो संभवतः वैनोदिक अधिकरणका होगाएँ |
इन उपयुक्त उद्धरणोंसे काव्य-मीमांसाका पूर्ण होना प्रतीत होता है, परन्तु अभी तक
हमें इसके कवि-रहस्य नामक प्रथम अधिकरणसे ही सनन््तोष करना होगा; जिसका विस्तृत
विवेचन हम आगे चलकर करेंगे ।
राजशेखर तथा अन्य भाषाएँ
राजशेखरके समयमें संस्कृतके साथ-साथ प्राकृत, अपभ्रंश ओर भूतभाषाओंकों प्रचार भी
अधिक मात्रामें था। ब्रजभाषाड्ी मूलभाषा सोर्सेनीका भी प्रचार था। एक स्थानपर वे
लिखते है--मधुर-मधुरावासि-मणिति:ः | ये सभी भाषाएँ काव्य-भाषाएँ थीं। राजशेखरने
इस विषयपर पर्याप्त मीमांसा की है। राजशेखर स्वयं अनेक भाषाओं के विद्वान् थे जिसका उन्हें
गर्व था और यत्र-तन्न बार-बार इस विषय पर लिखते रहे हैं। इनकी प्राकृतभाषाकी उत्कृष्ट रचना
कर्पूरमञ़्री नामक सट्टक है। सम्भव है उन्होंने अपभश्रंश और पेशाची आदियमें भी मुक्तक या
प्रन्न्ध रचनाएँ की हों । उनके समयमें किस देशमें किस भाषाका अधिक प्रचार था और किस
देशवासियोंको कौनसी भाषा अधिक प्रिय थी--श्स विषय4र राजशेखरकी मीमांसा द्वारा अच्छा
प्रकाश पड़ता है। इसी प्रकार उच्चारण सम्बन्धी विवेचन भी अत्यन्त मामिक है ।
जल आजनरई ७-७. -++- अमन ननन-ननम+--नननन अणन हण.32 ल्मिननननानीयनाननम
१. देखिए, काव्यमीमांसा, अध्याय २.
२. देखिए, काव्यमीमांसा, अध्याय ३,
३, यदाह राजशेखरः “-
समानमधिक नन््यूनं सजातीय॑ विरोधि च ।
सकुलय सोदरं कल्पमित्यादाा: साम्यवाचकाः ॥
अलंका रशिरोररन सर्वस्व॑ काव्यसम्पदाम् ।
उपमा कविवंशस्थ मातैवेति मतिर्मम ॥
४. उत्पादितेनभोभीतेः शेलेरामूलबन्धनात् ।
तांस्तानथोान् समाछोक्य समस्यां प्रयेत् कविः ॥
--अलंकारशीखर, मरीचि १९ ।
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