काव्यमीमांसा आलोचना व निबन्ध | Kavyamimansa Aalochana Nibandh

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Kavyamimansa Aalochana  Nibandh by केदारनाथ शर्मा सारस्वत - Kedarnath Sharma Saraswat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १५ ) अतः यह सम्भव है कि वे अन्तिम जीवनमें इसे पूर्ण न कर सके हों। कुछ प्रमाणोंसे यह माना जा सकता है कि वे इस ग्रन्थको पूणण कर चुके थे; किन्त हमारे दुर्भाग्ससे उसका शेष अंश प्राप्त न हो सका। राजशेखरने कवि-रहस्य नामक प्रकरणमें रीति, रस, अलंकार तथा अन्यान्य विषयोंके प्रसंगोंपर लिखा है कि इसे अगले प्रकरणमें कहेंगे । जेसे-- शास्त्रनिर्देश प्रकरणमें अलंकारको वेदका सातवाँ अज्ञ मानते हुए वे कहते हैं कि अर्लंकारोंकी व्याख्या आगे करेंगे । रीतियोंके सम्ब्नन्धमें भी उन्होंने ऐसा ही कहा है कि उन्हें आगे कहेंगे। मन्त्र-सिद्धि भादि द्वारा कवित्व प्राप्तिके सम्बन्धमें भी उन्होंने लिखा है कि इस विषयको ओऔपनिषदिक प्रकरणमें कहेंगे | इन बातोंसे यह सिद्ध होता है कि या तो वे समस्त ग्रन्थकी रचना कर चुके होंगे या उसका विषय-विभाग करके ही रह गए हों । इसके अतिरिक्त अलंकारशेखर नामक अलंकार भ्रन्थकी एकादश मरीचिमें राजशेखरके दो उद्धरण प्राप्त होते हैं, जिनमें एक उभयालंकारिक प्रकरणका प्रतीत होता है? और दूसरा उनन्‍्नीसवीं मरीचिमें समस्यापूर्ति विषयक उद्धरण मिलता है; जो संभवतः वैनोदिक अधिकरणका होगाएँ | इन उपयुक्त उद्धरणोंसे काव्य-मीमांसाका पूर्ण होना प्रतीत होता है, परन्तु अभी तक हमें इसके कवि-रहस्य नामक प्रथम अधिकरणसे ही सनन्‍्तोष करना होगा; जिसका विस्तृत विवेचन हम आगे चलकर करेंगे । राजशेखर तथा अन्य भाषाएँ राजशेखरके समयमें संस्कृतके साथ-साथ प्राकृत, अपभ्रंश ओर भूतभाषाओंकों प्रचार भी अधिक मात्रामें था। ब्रजभाषाड्ी मूलभाषा सोर्सेनीका भी प्रचार था। एक स्थानपर वे लिखते है--मधुर-मधुरावासि-मणिति:ः | ये सभी भाषाएँ काव्य-भाषाएँ थीं। राजशेखरने इस विषयपर पर्याप्त मीमांसा की है। राजशेखर स्वयं अनेक भाषाओं के विद्वान्‌ थे जिसका उन्हें गर्व था और यत्र-तन्न बार-बार इस विषय पर लिखते रहे हैं। इनकी प्राकृतभाषाकी उत्कृष्ट रचना कर्पूरमञ़्री नामक सट्टक है। सम्भव है उन्होंने अपभश्रंश और पेशाची आदियमें भी मुक्तक या प्रन्‍न्ध रचनाएँ की हों । उनके समयमें किस देशमें किस भाषाका अधिक प्रचार था और किस देशवासियोंको कौनसी भाषा अधिक प्रिय थी--श्स विषय4र राजशेखरकी मीमांसा द्वारा अच्छा प्रकाश पड़ता है। इसी प्रकार उच्चारण सम्बन्धी विवेचन भी अत्यन्त मामिक है । जल आजनरई ७-७. -++- अमन ननन-ननम+--नननन अणन हण.32 ल्‍मिननननानीयनाननम १. देखिए, काव्यमीमांसा, अध्याय २. २. देखिए, काव्यमीमांसा, अध्याय ३, ३, यदाह राजशेखरः “- समानमधिक नन्‍्यूनं सजातीय॑ विरोधि च । सकुलय सोदरं कल्पमित्यादाा: साम्यवाचकाः ॥ अलंका रशिरोररन सर्वस्व॑ काव्यसम्पदाम्‌ । उपमा कविवंशस्थ मातैवेति मतिर्मम ॥ ४. उत्पादितेनभोभीतेः शेलेरामूलबन्धनात्‌ । तांस्तानथोान्‌ समाछोक्य समस्यां प्रयेत्‌ कविः ॥ --अलंकारशीखर, मरीचि १९ ।




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