आरती और अंगारे | Aarti Aur Angaare

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Aarti Aur Angaare by डॉ बच्चन सिंह - Dr. Bachchan Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१ मेरा कवि मज गरिमा समर्भ, मेरी कविता हो गजगामी । निद्रा के नीलम अबर से स्वप्न-इवेत गज अरुण जलज ले मेरे मन-तडाग में उतरे, लहूरे उठ-उठ, गिर-ग्रिर मचले, हो जाए जब जल-कोलाहल शात, कमल तल में आरोप, और अतल से एक उठे सगीत गगवभेदी श्रविरामी । मेरा कवि गज गरिमा समझे, मेरी कविता हो गजगामी । एलोरा - ऐराबत जैसे भार पदताकार उठाए, भारत की प्राचीन कला का, सस्कृति का, वेषीठ भुकाए, उसी तरह से नए हिंद की नई जिंदगी, नई जवानी, ताकत, मस्ती, हस्ती, बनने की मेरी वाणी हो कामी । मेरा कवि गज गरिमा समझे, मेरी कविता हो गजगामी । श्र झारती झौर भगारे




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