हिंदी नाटक | Hindi Natak

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Hindi Natak by डॉ बच्चन सिंह - Dr. Bachchan Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दवित्दी नाटकों के उद्भव के पूर्व श्र उनकी काव्य-प्रतिभा उनके नाटकों को ज्रुटिपूर्ण न बनाकर नेटकीय चरित्रो श्र क्रियाश्रों को काब्नात्मक सवेगों से समन्वित करती है । काब्यात्मक्ता के कारण उनके नाटकों के सतुलन श्र मियंत्रण में कोई विस नहीं श्रा पाया हैं । कियू उनके नाटकीय बस्तु-विन्यास रंगीन घटनाश्रों श्रौर सूक्ष्म सानवीय चरिन्नो की झ्पेक्षा काव्यानुयूति की गददरी ममें-स्पशता कहीं झधिक प्रभावोत्पादक है । उन्होंने भावुकता को प्रश्न दिया है कितु उनके ऊपर वह स्वयं हाथी नहीं है | रोमांस उनके नाटकों का प्राणत्तत्व है किंतु उसका संतुलन कहीं विखरा नद्दीं है | कालिदास के परवर्ती काल (शुद्रक से भवभूति तक) में शतेक प्रकार के रोचक श्रौर उत्कृष्ट नाटकों की सष्टि हुई । शूद्रक का मुच्छुक टिक संस्कृत नाटकों में श्रप्रतिस है । सृच्छुकटिक उन थोड़े सस्कृत नाटकों में है जिनमें संस्कृत की शास्त्रीय परिंपाठी का झति- क्रमण कर श्रधिक व्यापक और गहरे जीवन की खोज की गई है । वरतु-विन्यास की स्वाभाविक गलिशीलता बैदर्घपूणण कथोपकथन सामान्य जीवन के विधिध चरिन्न इस नायक को श्राधुनिकों की रुचि के श्रनुरूप बना देते हैं । प्रियदर्शिक्रार नागानन्दर शोर रत्नावली? के र्चयिता दप सुख्य रूप से श्रलंकति-प्रिय रचनाकार हैं। क्रिन्सु इनकी श्रलकरण-प्रियता में एक प्रकार की रोचकता दिखायी पड़ती है । थे श्रपने समय के विख़यात्‌ नाट्ककारों में है लेकिन खूपाति के मूल में इस की प्रतिमा का उतना योग नददीं है जितमा इनकी बेतनता (0008010प80685) के | नवीन इष्टि से धिचार करने पर संस्कृत नाठकों को लंबी उनची में विशाखदत्त के मुद्राराक्ुस का स्थान झटितीय दिखाई पड़ता है | कथानक विषवन्प्रतिपादन तथा शैली की दृष्टि से संस्कृत के श्रस्य नायकों के वर्ग से इसका कोई साम्य नहीं है । हृदय की कोमलता रोमांस घामिक प्रतिबन्धों के प्रति श्रादर की भावना श्रादि के लिए




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