देश के नौनिहालों से | Deshke Naunihalon Se

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Deshke Naunihalon Se by रुलियाराम गुप्त - Ruliaram Gupta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३ ) दारी कोई अपनी नहीं मानता । स्त्रियॉकी भी इसी प्रकारकी दुदेशा है। नव शिक्षिता वघुऑओमें न तो व्यव- 'हारिक ज्ञान रहता है और न बौद्धिक । वे न ग्रहकार्यमें दस हैं न ,बादरके। फिर पारिवारिक जीवन सुधारे कौन १ सन्तानको उत्तम बनाये कौन ? आवश्यकता है कि भार- तीय सस्कृति और सभ्यताको परिष्कृत कर उसे अपनाया जाये । मातृभाषाका ज्ञान होना सबसे बड़ी -आवश्यकता है । धर्म शास्त्रोंको अनिवार्य रूपमें पढ़ाया जाये ताकि उनकी भलाई बुराई सभीको मालूम हो जाये और सुधार किया जाये। यदि ऐसा न-हुआ तो हमारी भी आगे चल कर वही दशा होगी जो, कि छोटे-मोटे पश्चिमीय अथचा अदिक्षित पूर्वीय देशोंका हो रहा है । भारत और भार- तीयता दी ससारसे - लोप दो जायेगी । .रददन-सददनमें आमूल पणिषर्तन,की आवश्यकता है । देशी ढट्ठ कितना मोहक और उपयोगी यह. विदेशियोंसे, पूछा जाये ।




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