कथा कहो उर्वशी | Katha Kaho Urwashi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
434
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about देवेन्द्र सत्यार्थी - Devendra Satyarthi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कथा कहो उर्वशी : : २४
इसी से प्रेरम्सा लेकर ब्रह्मा की मूि बनायी गईं 1 इसी से विष्यु की मूति
1 ।
चतुर्मुख का जन्म मयूरमज में हुआ 1 वह नौ बरस के थे, जब उनके
पिता भूतिकार उपेन मारे गए। महाराज से उपेन को ठन गई थी।
महाराज उनकी बनायी हुई नटराज की मूति माँगते थे । उपेन ने गरडढ़ा
खोदकर भूति छिपा दी । महाराज के आदमी झाये और मूर्ति का पता न
बताने पर उपेन की बहुत पिटाई की । मूर्ति तो न मिली, पर उपेन की
मृत्यु हो गई । फिर धौलो से केलू काका बहन भौर भानजे को लिवाने झयि
ती जाते समय उदारतापूर्वक वह मूर्ति महाराज को देते झाए।
सत्तर वरस पहले को वह घटना चतुमूंख के मन पर पंक्ति है ।
भुवनेश्वर से दो-ाई कोस होगा धौली। पास से दया नदी बहती है।
जो लोग भुवनेश्वर श्राते हैं, धोली की यात्रा अवश्य करते हैं ।
दूर से सुन्दर दीखता है घोलगिरि के शिसर वाला मन्दिर । उसके
खण्डहर ही शेष रह गए हैं ।
धोली को झोभा हैं ताल गाछ, जैसे समा को शोभा पच्र परमेश्वर
होता है भौर गोठ की धोभा दुधारू गाय | वन्धु को सुन्दर बनाती है दूरी,
जैसे सागर-तट की झोभा है लहरों का आलिंगन 1
धौलगिरि के चरण-स्थल में, गाँव से प्राध-एक कोस हटकर, ऊँची
जगह पर स्थित है भदवत्यामा चट्टान, जिसके ऊपरी सिरे पर हाथी वा
मस्तक बना है, और नीचे इसे छेनी से समतल करके वर्सिय वी हार होने
पर अशोक ने राजाज्ञा अंकित कराई थी ।
“पझसली धौलगिरि तो नेपाल मे है, छश्ब्रीस हजार फुट से भी ऊँचा ! ”
| कोई-कीई यात्री कह उठता है, “यह दोन््नोन सो फुट ऊँची पहाड़ी किधर
का धौतगिरि हैं !”
धौनी वाले यही उत्तर देते है, “हमारो पहाड़ी का नाम तो भप्रमोक
से भी पहने का है ।”
चतुमु स सममाते हैं, “मम्वत्वामा का हाथी-मुस्त बुद्ध का अतीक है।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...