पीतलकी मूर्ति | Pital Ki Murti

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Pital Ki Murti by बाबू रामलाल वर्मा - Babu Ramlal Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[भाग मकुमारोफझा घुस न । श्र शा सननननमुनेअस नस 9+>म+ नमन न + 9 +>नथ++9>9++>>५-०...+-->->००-०----०००-०-०+- हुरियां शव घट प्रहयड मैं पे कट हिट्र कर चुद्तो चों। यए सब एुछ होशवाधा। परल पर इमो कौरित थी । > परम इसके कुछ हो चछ बाद चछ मैशीगका, पो पोतहकों गूत्ति- क भोतर बनी थो, पिदता दृरशाष्ट चझापरोे आप शत गया, पयवा मे समलना चाएियएे, हि रण पृ्खा को चाएगे 89 घोल दिया। पोद् ! दरवाजा घरामेद्ो बेगेमेग छम्र सुत्तिक्त मोसरत उत्धज्े भोये याति महुरेगे एन सभयापक् घोर धभो तक खिए चरछिए पर गिए पड़ो, को हमको घोस धाल/के लिय मु ६ फाई तम्ार मो ! ” गरद् तब रद जीवित घी; शद सह रस तरह चरणियोपए भा पिरी थी ; परन्तु छ्तका चोएगा-चित्रागा फ्रागम कम शो रहा पा। हश्की दोगी भ्रॉपे फट गयी घी, सारा शशैर जयमो श्रोर एम लए मुश्म 'हो रद्या था, इसो धरश्प्याएगी चद घन चरथियों पर गिरो थो । छमके गिरते दो छग पहो चरणिियोंने ग्रपना याग भारणम कर ब्पा चोर उनको रीदी छवियां मे गेतमक्े भरत श्रयकी काटने रंगी' । मेरी 1गवा भार पड़ते ही परदिया जोर कौरसे घमने लगी | शक अमायो म्यो 'उनतोयों एवियोॉपर छो गियो धो शोर पढां एक निमेष मात वह्ठ धिधो एुएं यही रड्ो परन्तु द्वसरे शो चणय, जेधा कि गो अमो इस दइ फापे एँ, थे चिता घूमने लगीं। उनमें लो सुई छरियां छ6के घशेरक्त प्रत्येक माय कों काटने, चोरते तथा फाडने लगीं। और ! सभपगृष री पे उस टुकड़े टुकठे करने लगीं | इस तरद जिस समय वह घयों पदों बार घूमो, उसो समय भ्रभागी ये रोनिसका चान लोप हो गया, उउकी जान निकल गयी भोर 'उछकी भ्रामा घदाके लिये इस झ्रसार ससारक्ो त्याग 'कर परलोीक छिधार गो 1 परन्तु इछसे क्या ? छन भवानक चक्षियोंने प्रपना पु किया | बरायर काटतो, दोरती और बेघतो हुईं घूमती ज] व्राॉ 5 हू का




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