सामान्य भाषा विज्ञान | Samanya Bhasha Vigyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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थे] मा (११०); साहित्यिक लेखबंद्ध भाषा से झम्तर होना । लिखंब्रद्ध साहि- स्थिक माषा विशिष्ट भाषा है पर है यह भी परिवतनशील ' (१९२०-२१) । विशिष्ट भाषा (१२९), विकृत बोली (१२३), रहस्यात्मर्क प्रभाव (१९१०२२,) सामाजिक भ्रेष्ठता या दीनता से भी रहदस्यात्मर्क भेद (१९२३-२४) । व्याकरण टारा प्रतिपादित रूप हो भाषा का श्रसली रूप नही है (१२५४-२५), लिखित माषा श्रौर बोलचाल की भाषा में श्रन्तर (६२४-२६),बच्चे की बोली (१२६), विशेष भाषा श्रौर विशेष जाति में परस्पर समवाय नहीं है (१२६) ॥ 'अडारहवीं श्रध्याय--भाषा का वर्गीकरण....पृष्ठ १२७-१३७ विभिन्न भाषाओं में समानता दो प्रकार से--पदरचना श्र श्रर्थतत््व की समानता से (१२७), श्रतएव द्विविघ वर्गीकरण--श्राकृतिमूलक तथा इत्ति- द्ासिक या पारिवारिक (१२७), । श्राकृतिमूलक के श्रनुसार दो घग--श्रयो- गात्मक (१९२७-२८) श्रौर योगात्मक (१२८) ! फिर योगात्मक के तीन भेद-- श्रेशिलि (१२८०२४) शिलि्र और प्रश्लिष्ट (१३०) | भाषाश्रों का एके पर्ग से दूसरे वर्ग में विकास (१३०) । इतिहासिक वर्गीकरण, परस्पर समीपता से इतिहासिक सम्बन्ध (१३१), शब्दसमूह के चार भाग (१३१२-३३) शब्द- समानता श्रपेक्षित है (१३३) व्याकरणात्मक समानता (१३४), व्वनि- समूह की समानता (१९३४-३५) ध्वनिनियमों की समानता (१९३५-३६), श्थानिक समानता (१३६) । श्रादिमाषा (१३६-३७) श्रौर श्रन्य श्रनिर्धारित भाषाश्रों का निर्धारण करना (९३७) । . उस्रीसवां अध्याय--वाक्यविचार........... पृष्ठ १३८--१४४ वाक्य भी एक श्रवयव हे पर वक्तव्य का (१३८)।जो कि स्वयं इमारी विचारधारा का छोटा अवयव मात्र है (१३८), इस विचारधारा का श्रट्ूटत्व (१२६) श्रोर यह हमारी विचारधारा स्वयं एक बृहत्तर विदययारधारा का शव यंव मात्र है (१३४) । प्रकरण, इंगित श्रौर श्राकार की सद्दायता (१४०-४१ शिक्षित शरीर श्रशिक्षित के वाक्यों का मेद (१४१-४२। वाक्य के दो श्रंश-- उद्देश्य श्रौर विषेय (१४३), वाक्य की लम्बाई (१४४) । वाक्य में पदक्रम (१४४) । वाक्य-विश्लेषणु में विभिन्नता (१४५) ॥ पीसवां झध्याय-भाषाविज्ञान का इतिहास....पृष्ठ १४६-१६७ भाषा-विपयक सर्वप्रथम विवेचन भारतवर्ष में हुश्ना । वैदिक संहिताश्ओों को यथातथ रखने के प्रयक्ष, शाकल्य का पदपाठ (१४६), प्रातिशास्यों श्र नियंक्त का निर्माणु (१४७), सर्वप्रथम वैयाकरण इन्द्र, पास्िनि श्र उनकी 'प्र्टाथ्यायी (१४८), सुनिनेय,'न्य उत्तरकालीन पैयाकरण (१९०), वैयाकरनस्ों




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