आधुनिक राजनीती की चिन्त्य धाराएँ | Aadhunik Rajniti Ki Chintya Dharayein
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
399
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चिन्त्म-धारायँ [ १३
सामालिक बातागरण स्थापित कर देता है जिसे समा मैठिक कार्य छृमश'
मानवह्ता है राज्य को विकसित कर सर्के। राज्य बारा जिस बल का प्रयोग किया
बाह्य है. गह प्रत्य प्रकार के ब्लोंसे पूर्सतया मिन्त है। 'उसड़ी एक पवितत
महत्ता है, क्र्योद़ि बह ऐसो शक्ति का प्रतिनिषिए्व करता है थो प्राध्पारिमक, मैधिक
झौर विवेकमग चएम रुस्््याण की स्पापमा प्रौर उसके विकास में रत है”
कित्तु काएट राग्य की बेदी पर ध्यक्तिगत स्वार्तस्प की झाहृति देने को हत्पर महीं
है। गह स्यक्तिमत स्थापीनता का समुचित मूल्यांकत करता है। यद्यपि बह
ध्यक्तिगठ स्वाधोमता को सामाजिक जीशन बी प्रावश्यकताप्रों के प्रन्व॑य॑त रखठा
है किग्तु ऐसा करके बहू स्यक्तिपत स्वाघोदता का परित्पाग गहड्ढीं कर दंता।
झ्टतः यह स्थाम भौर व्यक्तिपत स्थाढ्षीसता के सभ्य बसनेबाह्ा उसका
मानसिक संभप है। इस दानों दो पूर्स समस्बित बर्ने का माय उसे हृष्टिपोबर
नहीं होता प्रौर बह एठ्सा ईमानदार है कि दोमों में से शिसी एक गो भी बस्ि
शान करने के शिए तैयार रहीं है।
क्रान्ति फा अधिकार
फ्ॉस की राम्प-ह्म्दि ते कार्ट के मातस को मपे्ट रूप में प्रमावित ही नहीं
किया बरन् प्रसे गिबलित भौ श्या | कासट के मठ में मासग कौ गैतिक सत्य
पृष्ठि के हैतु रास्प का प्रस्तित्व दो प्रागश्यक है दिन््तु बह उठे क्मत्ति मा गिरोह
का प्रथिकार महीं देता । उसकी दृष्टि में शाधक को १६चयुत करमा हपा उसकी
हृए्पा करमा भोर प्रमैतिक एजं अपम्य हरप है। यह एक ऐसा प्रपराभ है लो
क्षम्प गहीं है। मस््तुत' यह बेश्रा है| निहट्ठम पाप है बैता कि बर्मशाह्रों में
“बुगोतात्मा' के प्रि किया गया पाप, जो प्रक्षम्प है। भ्रठ' क्ाएट व्यक्ति को
बिप्लोह का प्रपिकार प्रदाम महीं करता! यदि किसी संदेघातिक सुबार बी
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से कारट हीमेश-पर्ची है।
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