ईश्वर और संसार | Ishwar Aur Sansaar

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Ishwar Aur Sansaar by जयदयाल गोयन्दका - Jaydayal Goyandka

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about जयदयाल गोयन्दका - Jaydayal Goyandka

Add Infomation AboutJaydayal Goyandka

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
रामायणमें आदर्श भ्रातृ-प्रेम श१९ रे है फटे फैर कै हर और हरे हे है है है हे जुर हर हुए है और हरे है कै जे और हु हुए / 7 और हुए कै फुट हरे रे फरे अरे हर जे और कर अरे करे फुरे अरे हे के कु के हे करे के है कौर और हि कौर के फहरि करे जे कौर पी हरे के और और ज॑ औ कर निज जस जगत कीन्हि उजिआरी ॥ कहत भरत गुन सील सुभाऊ | | पेंम पयोधि मगन रघुराऊ ॥ श्रीराम भरतका गुणगान करते हुए प्रेमके समुद्रमें निम्न हो गये ! 'लक्ष्मणजीको अपनी भूल मालूम हो गयी । यहाँ भगवान्‌ श्रीरामने लक्ष्मणके प्रति जो नीतियुक्त तीखे और प्रेमभरे वचन कहे, उनमें प्रधान अभिप्राय तीन. समझने चाहिये। प्रथम, भरतके प्रति श्रीरामका परम विश्वास प्रकट करना, दूसरे, लक्ष्मणको यह चेतावनी देना कि तुम भरतकी सरलता, प्रेम, त्याग आदिको जानते हुए भी मेरे प्रेमवश प्रमादसे बालककी तरह ऐसा क्‍यों बोल ; रहे हो ? और तीसरे, उन्हें फटकारकर ऐसे अनुचित मार्गसे बचाना। ह भरत आये और हे नाथ ! रक्षा करो' कहकर, दण्डकी तरह पृथ्वीपर गिर पड़े । सरलहृदय श्रीलक्ष्मणने भरतकी वाणी पहचानकर उन्हें श्रीरामके चरणोंमें प्रणाम करते देखा, हृदयमें भरातृ-प्रेम उमड़ा परन्तु सेवा-धर्म बड़ा जबरदस्त है । लक्ष्मणजीका मन करता है कि भाई भरतको हृदयसे लगा हूँ, परन्तु फिर अपने कर्तव्यका ध्यान आता है तब श्रीराम-सेवामें खड़े रह जाते हैं । मिलि न जाड़ नहिं गुदरत बनई । सुकबि लखन मन की गति भनई ॥ रहे रासखि सेवापर भारू। चढ़ी चंग जनु खेंच खेलारू ॥ आखिर सेवामें छगे रहना ही उचित समझा, परन्तु श्रीरमसे निवेदन किये बिना उनसे नहीं रहा गया--लक्ष्मणजीने सिर नवाकर ग्रेमसे कहा-- भरत ग्रनाम करत रघुनाथा 1 भगवान्‌ तो भरतका नाम सुनते ही विह्ल हो गये और प्रेममें अधीर होकर उन्हें उठाकर गले लगानेको उठ खड़े हुए। उस समय श्रीरामकी कैसी दशा हुई--- ह




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now