संक्षिप्त महाभारत | Sankshipt Mahabharat

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Sankshipt Mahabharat by जयदयाल गोयन्दका - Jaydayal Goyandka

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about जयदयाल गोयन्दका - Jaydayal Goyandka

Add Infomation AboutJaydayal Goyandka

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
( २३ ) पृष्ट-संख्या ५०२-सकाम भक्तोंकी विभिन्न देवताओंके प्रति भक्ति ४०३-अन्तकालमें एकाक्षर ब्रह्म (प्रणव) का उच्चारण करते हुए उसके अर्थरूप निर्मुण भ्रह्मके चिन्तनसे परम गतिकी प्राप्ति ४५०४-अनन्यभावसे चिन्तन करनेवाले भक्तके लिये भगवान्‌की सुलमता .. ४०४-राक्षसी (क्रोष), आसुरी (लोभ) और मोहिनी (काम) प्रकृति एवं आसुरी सम्पदा- से युक्त मनुष्य . ५०६-ध्यानपूर्वक भगवान्‌के नाम-गुणोका कीर्तन तथा उन्हें प्रणाम करनेवाले भक्त ५०७-भगवानद्वारा निष्काममावसे नित्य-निरन्तर चिन्तन करनेवाले अनन्य भक्तका योग- क्षेमवहन ५०८-मंगवान्‌का भक्तद्वारा प्रेमपूर्वक अपंण किये हुए पत्र, पुष्प, फल और जलका भोग लगाना ५०९-भोजन, हवन, दान और तप आदिका मगवानूकों अपंण ५१०-परस्पर भगवत्तत्त्व बोध करानेवाले, प्रीति पूर्वक भजन करनेवाले और भगवत्कथामे लगे रहनेवाले भक्त .. ४ ५११-भगवत्तत्त्वके है वक्‍ता देवषि नारद, असित, देवल और थ्यास श ५१२-नक्षत्रोमें चन्द्रमा और ज्योतियोमे सूर्यरुपमे भगवान्‌ ५१३-पुरोहितोमे बृहस्पति, सेनापतियोमे स्कन्द ., और जलाशयोौमे समुद्रके रूपमे भगवान्‌ ५१४-महपियोमे भृयु, शब्दोमे ओकार, यज्ञोमें जपयज्ञ और स्थावरोमे हिमालयके रूपमे भगवान्‌ ५१५-दत्योमे प्र्माद, मृगोमे मृगेन्द्र और पक्षियोमे गरुडके रूपसे भगवान्‌ . ५१६-शस्प्रधारियोमे श्रीरामके रूपमे भगवान्‌ ५१७-अर्जुनकी प्रार्थनासे भगवान्‌का पुनः सोम्य- मूतिधारण ५१८-निराकारके साधनम वलेशोकी बहुलता तया अनन्यभावरो समुण भगवान्‌कों भजनेवाले भवक्‍्तोरा स्वय भगवान्‌द्वारा मृत्युरुप संसतार- समुद्से उद्धार ५१९-जन्म, मृत्य, जरा और व्याधिस्प दुख ४२०-सम्पूर क्षेत्रोमें एक ही आत्माका प्रकाश ५२१-युणातीत महात्मा पुरुष इ्ररे श्२५ ६२५ ६२६ ६२७ ६२७ ६२७ ६२८ ६२९ ६२९ श्र ह३े० इ्रे४ ६३५ ६२६ रे पृष्ट-संख्या ५२२-आमसुरी सम्पत्तिसे युक्त मनुष्यता संग्रह कार्य ५२३-नरकके तीन द्वार--काम, क्रोध और सोम ५२४-सात्तिक है 4008 देवारापना, राजसोरी मद्ापूजा और तामासोंडी प्रेतोपासना ५२५-कायकलेशप्रद घोर तप . - ५२६-सान्विक, राजन और तामस भोजन .. ५२७-मात्तविक, राजस और तामस यज्ञ, ५२८-तसात्त्विक, राजन और तामस दान ५२९-अर्जुनका मोह-नाश .. ३०-युधिप्ठिरका भीष्म आदिके पास युद्धके लिये आज्ञा लेने जाना .. ब्ड ५३ १-युधिप्ठिरको भीष्मफा आशीर्वाद ५३२-युघिप्ठिरको द्रोणका आशीर्वाद ४३३-युधिप्ठिरको शपाचार्यका आशीर्वाद ५३४-युधिप्ठिरको द्ाल्यका आशीर्वाद ५३५-भीप्स और अरजजुनका युद्ध कर ५३६-घटोत्कच और अलम्बुपका युदढ_.. ५३७-भीष्म ओर दवेतका युद्ध--भीपष्मने इवेतफी इक्ति काट दी ग्ड ४३६५-दुर्पोघनका कौरव-वीरोंको संगठित होकर युद्ध करनेके लिये उत्साहित करना .. ५३९-भीमसेनके हायसे कलिज्जराज भानुमान्‌ और उसके हाथीका वध * ५४०-दुर्पोधनका भीष्मजीको उत्तेजित करना . . ५४१-मंगवान्‌ श्रीकृष्णणा चक्र लेकर भीष्मकों मारनेके लिये दोड़ना .. क ५४२-भीमसेनके द्वारा हाथियोंका संहार ५४३-विजयी पाण्डवोका भीमसेत और घटोत्कच- को भागे करके शिविरकी ओर लोटना . . ५४४-देवता और ऋषियोंका ब्रह्माजीसे मगवानुके विपयमे जिज्ञासा करना ५४५-दुर्गोधनका भीष्मजीसे भगवान्‌ इृष्णकी उत्पत्ति और स्थितिके विषयमें पूछना ५४६-द्रोघाचार्यका कौरवोकों रणमूमिमे अचेत अवस्थामे पढ़े देखना . है ५४७-भीमसेनक़े द्वारा दुर्पोधनकी पराजप ५४८-भीष्मका प्राणोकी बाजी सगाकर पाण्डवोसे लडनेकी प्रतिज्ञा | ५४९-अधश्वत्यामा और शियष्डीता युद्ध ५५०-मकुल-सहदेवकी मारसे मूछित' दत्यका मारथिके द्वारा युद्धक्षेत्रसे बाहर से जाया जाना . ह ६३२९ ६४० ६४० दर ध्ध्‌ दध१ 5४२ ६४3, ६४६ ६४७ डे ६४द ६४८ ६४० ६५० ६५३ ६५६ ६श८ ६६१ ६६२ ६६२ ६६६ ६६८ ६६९ दछ्४ ६७४ ६७६ ६७७ ६७5८




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now