एकलव्य | Eklavya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
337
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)फितु कोन था, तुम्हारी साधना को रोकता ?
वाहस का मार्य तीनों कालों में अशत्त हे।
काल-यति पे न कमी नष्ट होता शोर हे ,
ऐसा यह यूर्य है हि जिसका व अस्त है ॥
त्ञत्रि जाति ही हे अयणी क्या घनुर्ेंद में ?
ढाल या बूरणीर क्या उह्ी का पृष्ठ साय हे ?
घय्ाक्या उल्ीं की शक्ति फे समक्ष हे झुका ?
बाण क्या उहीं करों से फुररित नाय है ?
तुमने “ नहीं? कहा । की ऐसी निष्ठ साधना ,
एक शुद्र ने समस्त ज्षत्रियों की आन ली।
मानव रिनेद का ही लक्ष्य पेष थों किया ,
कि विश्व ने तुम्हारी जात मौन हो मान ली॥
ऐसी साधना दो मुझे, ऐकाय एकलब्य !
एक लब मेरी लेसनी को हो तुम्हारी ही ।
शब्द-येघ एक वार फिर हो, ऐ कार्मुकी /
चकित हो साधना से यह रृष्टि सारी ही॥
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