अर्ध विराम | Ardh Viraam

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Ardh Viraam by मुनि रूपचन्द्र - Muni Roopchandr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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और लोगों को वहकाएँ, इसी उधेड़बुन में मुझे ऐसा एहसास होता है, इने टनटनाती घंटियों के मिप कानों को बहुरा कर देने वाले हानों के मिप कोई कह रहा है- क्या हम इन सम्बन्धों में बंधे विना जी नहीं सकते ? इन दीवारों और मीनारों को तोड़कर क्या हम सास नही ले सकते ? इन थोषी हुई मान्यताओं की गरदन मरोड़कर हम अपने पर ही विश्वास नहीं कर सकते ? और उत्तर देने से पहले मैं सीच लेना चाहता हूँ इतना बड़ा गुनाह मैं कर सकूंगा ?




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