कला अकला | Kala Akala

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Kala Akala by मुनि रूपचन्द्र - Muni Roopchandr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कुंआरापन मादी हो तो पी-- उ्रा भी, पर न मुझे योया गया, ने मिचां गया, यर्षा का जल मवश्य मु्त पर गिरा, जो भी उगना था, उग बया-- आपारा सस्तानें--कंटोली शाड़ियां, आक के पत्ते पास-फूस-- इससे ओरों की तकलीफ है, (मुझ्ते मी कया कम है) पर किसी भी रूप में उगती कंसे नहीं ? माटी जो थी-- उर्वरा भी-- फ्रता-अकला ४ १७




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