भूमा | Bhooma

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Bhooma by मुनि रूपचन्द्र - Muni Roopchandr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पर यह श्रादमी भी बड़ा अजीब है जो कि बिना जरूरत थों जिये हो जा रहा है झोर विष-भरे समन्दर को होठों पर लगाये शंकर बनने को घुन में उसे पिये हो जा रहा है पर उसे नहीं मालूम क्रि तिनकों को श्रोट में छिपो हुई सर्पिणी गले में लिपटे साँप से ज्यादा भयंकर होतो है।




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