आधुनिक हिन्दी काव्य में विरह भावना | Aadhunik Hindi Kavya Me Virah Bhavna
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
477
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विरह भावना शस्व्रीय विवेचन ७
होते है।
गह झत्तार तत्व “ट्रगार कंबत इसलिए हो नहीं वहवाता कि यह प्राणी का
पृणता के एग पर पहुँचा दता है उल्करि इसजिए भी इसका शगार कहदे है, बयाकि यह
हो आ्तिम रति ह, जो प्राणी वे अपन प्रति प्रेम वे वारण झय विपया थे प्रति भी उससे
राग वा कारण बनती है। वह आ मयोनि झ्यात काम का स्वय जायन ही है 1 वाम से
हमारा यहाँ तालय स्त्री पुर्प के परस्पर आवपण से उपन हान वाला वाम नहीं है।
बवरन जसा कि हमने पहन स्पप्ट विया है, वाम स्वय जावाच्दा है जिध्क॑ द्वारा प्राणो
का प्रत्येक वाय जीवन वी रफ्ति पाता है तथा जीवन के विभिन झनुभया मे अनुकूज
और प्रतियूत परिस्थितिया वे दारण झनऊ' रसा का झनुमव वरता हू ।
शुगार भ्रादि रस
गगार रस को ्स व्यापर रूप मे समझ लेन के पश्चात हम निःचयात्मय रूप
से झाचायों द' उस विचार को पूणत स्पप्ड समझ पात है कि शगार हो प्रथम रस है।
रस उत्पत्ति वे विषय मे पग्निपुराण मं लिखा है--
“पर, प्रज सनानन विभु या सहज प्रानद कभी कभी प्रवृट हो जाता है, यह
झभियद्ित चदथ चमत्सार और रसमया हाती है ॥ उसने झ्रादि विश्ञार बा अहकार
कहत हैं। उसके झट भाव से झ्भिमान वा प्राटुभाय हुआ जा भुवन म “याप्त है। श्रह भाव
सकलित अ्रभिमान मे रति वी उत्पत्ति हुई इसी रति स श्गार का जम हुआ । (९
आत्मा के अहशार तत्त्व स अह भाव और अभिमान वी उत्पत्ति तथा इन दोना बः
सकलित हान से राग तत्त्व का उत्तत्ति होन क॑ भाव की पुष्टि हम पारटचात्य मनोबचानिवा
की राग तत्त्व सम्ब्र थी खोजा से भी मिल जाती है। फ्रायड वे मतानुसार भ्रात्मा का अह्
तत्त्व दो न््पा म प्रतट होता है। भह तत्त्व से हमारा गभ्रभिप्राय 205010४ ]0?८या
३२ सब्पामपि मूताला उप स्व्छीव बललम
व्तरेउपत्यवि-गया एत्ल्लभतवै+ हि।
+-भागवव
ए अक्वर जद परम सनातनमत विमुस्
आनना सास्पस्थ यज्यते सददायन
न्यवति सासस्यचैलन्थ चमत्कार रसाहया
आउम्नस्थ विकरो य सोहबार इति ब्मत,
तपोमिमानलजेंद. समात मुब नयम्,
अभमिमानाटति_ सा चपरिषोषमुय्ेयिषु,
राणादभवत्ति श्वगारो गेद्रस्वथ मान्ू अजब,
वारोवष्टम्भमर. सवोचमवों भस इच्च्यवे,
ख्गाराजायत दामों रोद्रातु क्सणों रस
वाच्याट्मतनिःपत्ति स्वाटामसास्सयानका |
User Reviews
No Reviews | Add Yours...