हिन्दी - शब्दसागर अर्थात हिन्दी भाषा का एक वृहत कोश भाग - 2 | Hindi Shabd Sagar Arthat Hindi Bhasha Ka Vrihat Kosh Bhag - 2

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Hindi Shabd Sagar Arthat Hindi Bhasha Ka Vrihat Kosh Bhag - 2  by श्यामसुन्दरदास - Shyaam Sundardas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कुमांच ण्श्ज कुमुल - क्ुमाच-संञ्ञा पुं० [ भर० कुमाश ] (१) एक प्रकार का रेशमी कपड़ा । ३७--का भाषा का संम्दृत, प्रेम चाहिये सच । काम जो आावे क्यमरी, का ले फरे कुमाच +--तुलसी। (२) गंजफ़ के पत्तों के एक रंग का नाम । (३) दे० “कीच” । संज्ञा धु७ [ देश० ] घेडाल रोटी लो कहीं से मोटी और कहीं से पतली दे ! कुमाए-संगा पुं5 [ सं> ] [ ख्री० कुमार ] (१) पंच वर्ष की थ्रायु का बालक । (३) पुत्र । बेदा । लड़का । (३) युवराज । (७) काति केय। (१) सिंधु नदी। (६) सुग्गा । तोता । (७) खफ सोना । (८) सनक सनेदन, सनत्‌ भार सुजात भ्रादि कई ऋपि जो सदा बाक्षक ही रदते दे । (६) युवावस्था वा उससे पहले की भ्रवस्थावाला पुरुष | 3३०--घाल्मीकि मुनि बसत निरंतर राम मंत्र उधार । ताका फल् मोहि' थ्राज भये मोि' दर्शन दिये! कुमार ।--सूर। (१०) जनियें के अनु- सार बत्त मान अ्रवसपिंणी के १२वें” जिन । (११) एक अद जिसका उपत्रव बालक पर द्वोता हैं। (१२) मंगल ग्रह। (१३) सीईस । (१४) भ्रष्ति के एक पुत्र का मास, जिन्होंने कई बेदिक मंत्रों का प्रकाश किया था । (१३) भ्रम्रि1 (१६) पक प्रजापति का नाम । (१७) भारतवर्ष का एक नाम। (१८) पक ऊँचा यृत् जिसका पतमार ८ोों में दवोत्मा है! | इसकी लकड़ी कुछ पीज्ञापन या ललाई लिए-सफूद रंग की नरम, चिकनी, घ्मकीली और मज़बूत होती हैं। इसकी अलमारी, मेज, छुरसी अर श्रारायशी चीज़ें बनती हैं। बरसा में इस पर खुदाई का काम्त भरच्छा द्वोता हैं। इसकी छाक्ष थार जड़ चापध में काम आती हैं श्रार फल खाया जाता है। इसकी कक्षम झगती है आर बीज सी देया जाता है । यद दुछ पदाई। पर वीम हक्षार ,फुट की डैंचाई तक मिक्षता है । यह बरमा, झ्ासास, क्वध, यरार और मध्य प्रांत में बहुत दोता है । खेचे | ल्‍ वि० [सं० ] बिन व्याहा । कु चारा । » कुमारगा-संजा पुं० [ सं० कुमार्ग ] कुमार्ग। घुरा सार्मे । उ०-- रे तिय चार कुमारगगामी । खत्न मलराशि संदमति कामी ।-- तुलसी । | कुमारतंत्र-संशा पुं० [ सं० ] धैद्यम फा बढ भाग जिसमें बच्चों के * हेशों का निदान और चिकित्सा हो। | बालतंत 1 कुमारभृष्य-संशा स्ली० [ सं० ] (+) गर्मिणी को सुस् से प्रसव कराने फी विद्या। (२) गर्भिणी घा नवप्रसूत थालकों के रेसों की विकिस्सा का घास । कुमारललिता-रुा स्री० [ स० ] (१) सात भक्षर का पुक चृत्त जिसमें एक जगंण, पक सगण आर संत में गुरु होता है । ५ « ब०--जु सोगहि शस्तवें।- प्रमोद उपदाये। अठीब सुकु-. ' मारी । छुमार ललिता री 1 (३) धालकों की शरीक । कुमारछसिता-सत्ञा स्री० [ सं० ] थ्राह अन्तर का एक बृच्, जिस- में एक जगण, एक सगण आर प्ंत में पुक लघु श्रार पुक गुए होता है । ३०--भजे जु सुखकंद को | हरो छ दुख दुंद के । कुम्रारिका-संडा स्री० [ से० ] कुमारी 1 कुमारिल भद्द-संता पुं० [ सं० ] प्रसिद्ध मीमांसक और शबर भाष्य तथा धन्य श्रोत सूत्रों के टीक्ाकार। इन्होंने पहले जैन धर्म्म प्रहण किया था पर कुछ समय पीधे अपने जैन गुरु के शाखा में प्ररास्त करके ये चदिक धर्म का प्रचार करने लगे थे। कहते ६ कि गुरुस़िद्वांत का खंडन करने के प्रायश्रिच्त के लिये ये कटाप्रि में जल मरे थे । यह भी कट्दा ज्ञाता हैं कि इनके भ्रप्तमि में जलने के समय शंकराचारस इनके पास भेट करने के लिये गये थे । फुमारी-रंशा स्री० [ स० ] (३) बारद वर्ष तक की श्रवस्था की कन्या । चै।०--कुमारीपूजा । (२) धीकुर्चधार। (३) नवमलिका। (४) बांक ककोड़ी 1 (२) बड़ी इलायची ! (६) श्यैमा पतो । (७) सीता ज्ञी का एक नाम । (८) पार्वती । (६) दुगां 1 (१०) पुक अतरीप, जे! भारतप के दश्खिन में है। (११) चमेली। (३२) सेबती । (१३) 'थिवी का मध्य भाग। (१४) शाकद्वीप की सात नदियों में से एक । (११) झपरामिता । बि० बिना ब्यादी । मिस (सखी) का विवाह न हुआ ऐ। । कुमारीपूजन-सेशा पुं० [ सं० ] पुक प्रकार की पूजा जे देबी- पूजन के समय होती हैं. श्रार मिसमे कुमारी धालिकाओं का घूजन करके उन्हें मिष्ठान्न आदि दिया जाता हैं । कुमाग-संज्ञा पुं० [ सं ] [ वि० कुमागी ] (१) झुरा मार्ग। छुरी। राद । (२) अधरम । || कुमागगामी-वि० [ सं० ] (3) कुपंथी । छुमार्शी (२) ब्रधर्मी। कुमार्गी-वि० [ सं० कुमार्गेंद्‌ ] [ क्ौ० कुमार्मनी ] (+) बदचलन । कुचाली । (२) अधर्मी । धर्मद्दीन कुमालक-संशा पुं० [स० ] (१) पुक प्राचीन श्रदेश नो वत्त मान मालवा के अंतरगंत था। इसे सावीर भी कहते हैं 1(२) इस देश के निवासी | कुमालछा-रंज्ञा पुं० [ १५० ] एक छोटा पेड़ जे। देहरादून, भ्रवध, छोटानागएुर, वैबई तथा दढ्िण भारत में होता है । यह ८- $७ छुट ऊँचा होता है ओर इसी पत्तियाँ चार पाँच इंच लंबी हैःती हैं! यह जेठ असाढ़ में फूलता है और इसका फल खाया जाता है । फुमुख-संशा पुं० [ सं० ] (४). रावण के दु्मुख नामक एक? योद्धा का नाम । व०--कुसुख, श्रकंपन, कुलिस रद, घूसकेतु




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