आत्मोद्धार | Aatmoddhar

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Aatmoddhar by लक्ष्मण नारायण गर्दे - Lakshman Narayan Garde

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नए क्‍--पीि(०७-पी ए ७७ >२एप०-:ए ०-० ५-४फीए “वंद्रयों, बालक और दाद राष्ट्रक्षके मूल हें। इन सबकी शिक्षा और पालन पोषणफी ओर सारतवर्षमें कोई ध्यान नहीं ठेता | जो ड्यश्रेणीके छोग हें चे बहुत हुआ तो इस राष्ट्र-उक्षके फल कह्टे जा सकते है । उक्षपर फल लदे हुए रसनेमे ही सब समय नष्ट करना ठीऊ नहीं। जटोंको देखे और उनमें भरपूर साद और पानी दो । गरीब छोम ब्लियाँ और चालक ही सत्यका डका पीटेगे । थथार्व राष्ट्रोद्धार राष्ट्रफी गरीब ( दुर्व ) जडोसे ही हुआ करता है ।”? (३२) ू सब दानोंभे विद्यादान श्रेष्ठ ह । यदि फ्रिसीको आप एक रोज भोजन देगे तो दूसरे रोज उसे फिर भूस ऊगेगी। परन्तु उसीको यदि आप कोई हुमर सिखा देंगे तो सारे जन्मके छिए उसके दानापानी- ८, का प्रवन्ध हो जायगा। वह हुनर, कला या निद्या ऐसी-होनी चाहिए ९ कि उसका जीवन सफल दो जाय । सभ्य मिक्षुऊ बने रहनेकी अ- पेक्षा जूते बनानेकासा कोई रोजगार-क्र लेना अधिक अच्छा है”! (३) “जहाँ ड्योगरी प्रतिष्ठा नहीं वहां अवनति और पिनाश वास करते ई। बहाँकछाकोशछकी भी मद्दी पलीद होती है । पर जहाँ 1 उद्योगकी प्रतिष्ठा होती है वहाँ जीवन ( चेतन्य ) और ज्ञान बास डे देशऊे भूँसों मरनेवाले नारायणों और मेहनत मजदूरी ऋरनेवाटि बिष्णुओंकी पूजों | निर्धन हिन्दू पिद्याधियोज़ों कलाकौशर प्राप्त ड करनेके लिए अमेरिका भेजो । वे वहोंसे सीसकर जब भारतवर्पम आवेगे तो लोगोफ़ो अपने वछ पर खडे होनेकी शिक्षा ४ंगे और उससे सक्टों, नहीं, हजारों रोटीके मोहताजोफी जाने बच जायेंगी।”? (४) | “अपने गॉयकी चमारिनों-भगिनोंको पटानेसे क्‍या तुम्हें छज्जा आती है या डर ऊगता ह * अगर ऐसा ही है तो घिकार ह तुम्हारी रीति-रस्मो पर ओर नीतिमत्ता पर [?? डर +-स्वामी रामतीर्थ 1 पउ-ए उप ७--उ ० पड >>एए०००एप०->तपा०->एप ० करते ह, वहें कछाकोशेलकी उद्धि होती है । | ; | / ;




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