समन्वय | Samanvay
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
410
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)'गणशपति-पृजा १९
मोतर हो इनका तत्त्व पहिचान लिया, तो फिर इनके बाहर कोल
पृथ्वी है जिसकी परिक्रमा बाको है ९?
“सचमुच तुम वुद्धिसागर हो, तुम्हारा ही ब्याह पर
ना चाहिये।?
चछे शंकर पादंती कन्या की खोज में । दंढते हूंढते विश्द-
फर्मा विश्वकप को दो कन्या, बुद्धि ओर सिद्धि, मिलीं । उनसे
व्याह किया गया | यह। दो तो समस्त विरुव को सारभूत
रन्नह।
इत्युबत्वा तु समाइवास्य गणेशं बुद्धिसागरम ।
विवाहकरण तो च मति चक्रतुरुत्तमाम् |
एतसिमिन्न॑तरे तत्र विश्वरूपडुते उसे ।
' सिद्धिबुद्धी शति ख्याते स्वोगसुन्दरे शुभ ।
ताभ्यां चैव गणेशस्य विवाह चक्रतुमुंदा |
यथा चेव शिवस्येव गिरिजाया सनोरथ; ।
दथा च विश्वकर्मां>सी विवाह ऋृतवांस्तदा।।
कियता चेघ फाछेन तस्य पुत्री बमूवतुः ।
सिद्ध लेक्ष्यस्तथा चुद्ध छाम:ः परमशोभन: ॥
माल्म पढ़ता है कि जहेज भी कुछ ठहराया गया था;
तो यह तो जरूर ही करार विश्वकर्मा से करा लिया गया
था कि खिलाना पिछात्ता बशत को अच्छी तरह । क्योंकि पुराण,
जो कद्ापि झृठ नहीं कह सकता, और जिसमें क्षेपक का संदेह भी;
करना मद्रापाप है, रिखता है कि जैसा जैसा शिव पादे ती का मनोरः
इुआ चसा वसा विचार विश्वकर्मा ने विवाह में किया | न करपाः
तो उसकी मुसीबत आ जाती | आजकाल हिन्दुओं के विनाहं।
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