श्री मदवाल्मिकीय रामायण भाग पहले | Shrimadvalmikiya Ramayan Bhag-1

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Shrimadvalmikiya Ramayan Bhag-1 by महर्षि वाल्मीकि - Maharshi valmiki

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(४) सामापत चश्प छोड) है (९४1४ ) ६७ प्टेकर्मे, हूसे २। ४ के परंसूरिमिः में | मवभूतिका करुणरउका आानाप माना गयादै डिद्व एम देखते हैं कि उन्हें इसकी दिक्ता आरिमबिसे है! मिली है। वे मरी कच्॒रामचरितफे पूसरे भद्ड मे ा्त्मीठियाप्डा रिट्र पर्पेधमि! पसुगपम्तमंद हि पुराष्यज्ष आदि प्रादेशमंदि डपाफ्ते' आफ्िसे उन्दीका सारण करते है। 'मुमागितफ्कनि के निमाठा शाह्वंपर उनके इस व्भक! राप ध्यक् करते हुए छिसते ऐं-- करीरद लौमि बास्मीकिं प्स्‍स्य रामाबष्प्रेज़्मास्‌ । अश्निक्षमिव विल्दश्ति अक्रोरा १ साथदः ॥ इसे ठप मय मास भआाचाये शड्डर, रामलुशदि तमी ठुपयदायाधाय॑ राज्य भोज भांदि परवर्दी बिद्यानोंसे छेकर हिंदी सादिव प्राण गोम्बामी दुसूटीरासशीतकने दंदों मुमिफद ढंझ राख्बन बैद्टि निमए्फ्ा जाम खदिकदि मामप्रतपपु' इामौफि भे हृध छम््य (थन्‍्रचरिदमान8) यो बल्मैफि मर स्गापने मुर्ि सा प्म/ मत झपे छिछ मुनि शिषि रूम्यबी ( इग्िठागप्ती ठत्तरकाग्ड १३६८ से (४ ) अ$ऋठ मुनैस मेंस मएणम ग्श्टे छैने छामकआ महिमा यरटे फमक मुनि फिजाहरिता 1 (िनपपत्िष्ा १५१) प्म्ट्या जप्य कस मा पार! ( बसै रामा ५४) गम शिटहाइ मशण हुए दिए सुररे! रण बटीऋए दो (कवि ७1८८) इ बाद पद्ेमे _तका गार बार भझापूतेद्ठ स्मरण डिपा है शूसज पर हासन पी है । संध्रिप्त मीवनी मरी जास्मीदि् मरे डरुछ छ॑ग निम्न ब्यतिरा बतखाते २३५९ *ा दएिएमदण ७६ ९॥ ९८४०१९६ ६ १६ 6था संध्या पगमादज ७। ७। ३१ में इस्होंने खप॑ सस्नयाो प्रयताष्य पु तद्गा है ७ मत वति १। १४ में प्रततस थ ए९६ व सु दाएशब न प्रघेतरो बेर शरद पुरमए बे वि भर व। मई जिला है। २ एश्पुरगर बैशारपाद्मास्म्पमे पगहे कमला रदाष बगगापा दे 1इठ्स ठिद्ध दे हि का ३4 ११५४ छत भय कु अविपा स्वर जे ट६१ थे अप्र+ हाए हरे गये ओडप रेगकप गये हा ७ ६ हृषा मं बरी इब्4क१त)ें बरिणर ६) शजा । स्पन्श अर आकवपर्रशने भी | मेंजिलत-अुब एफ्सडेबराद-- डयश्ू1३ जब छोक- हे ।प्रपगाग) । आमान्तरमें ये स्याष थे ६ ब्पाप-ब्न्मके पके मी सप्म मामके भीकस्सगोत्रीय द्राइण ये | म्पाष-अम्ममें समय ऋषिके सत्सासे, रामनामके रूपसे ये बूसरे असम “अस्निष्धर्मा ( मठान्तरसे सनाकर ) हुए. । गर्श मी स्पार्षफे सप्नसे कुछ दिन प्राह्मम संम्वारबध स्पाय-कर्ममें कगे | फिए ससर्वियोंके सत्8इसे मर मर खपकर--दोॉगौ पह़नेसे शस्मीकि मामते स्थात हुए और बास्मीकियमायतरक्ी रचना हे। (#स्पाण? से॑ स्तन्‍्रपुफ्णाडु ए १८१।७ ९ है श्घ्फे बगक़ाके कृतियात गभायम मानस) भध्या्मरामा २(६६४ थे ९२) भानस्दरामाक्ज रपऋाष्ड १४) २१-४९ मशिण पुराण प्रतिरर्ण ४] १. में मी मह कुषा भोड़े देस्‍्फेरसे स्पए १ ऐेखामी हुससीदासडीने बस्तुतः य£ कया निराचार नहीं खिक्ली । अतएव हमें मीच छातिवषा मानमा स्वषा अश्मूछक है | प्राचीन संरक्ठत टीकाएं शाप्मीकिएाफ्मपर अगणित प्राघीन थैश्नएँ है पषा--१ रूसे टीऊा ( इतका मागौद्दी भ” हपा ऐेबिन्द राश्यदिते बहुत इस्फेल विदा है) ९-नाग्प्रेडी भट्की तिफ्रक पा फ्मामियमी स्पास्या ३--गोकिन्दराजश्ये भूषण टोज|। ४--शियतद्वायवी रामापभ शिरोमणि स्मास्ल्वा ( से पूर्वोक्त दीनें टीरा, गुजराती शिडिठ्न प्रेस अम्धरेसे ए%मे री छपी ६1) ४--माहेश्र तीपडी हीपेप्पा््पा बा सध्यरीप ६-- बन्दर' शमानुखरी रामानुद्ीयध्याफ्या) ( ये दैसाएँ, ईंकरेश्वर पल पम्बरसे छपी ँै। ) ७-अरदराजकझुस विवेदशिक्व ८--ए एज यश सरनीरी पमामूय स्शफ्रा (प६ खष्य गा महठ एयं भीरइमसे छपी है) भोर ९--णमानस्ददीयेरी शमापजए्रुम्पाण्पा । इगफ्रे अतिरिक्त अतुरर्पदीपिता शमाइजबिराधपरिद्ार। शमायणसेत् तात्पपंगर्ि श्रद्रार मुपत र, रामामणरफ़विस्न मनोरमा साईि सनेफ़ रीबाएँ हैं| रीहिग्स इन रमायज! फ॑ सनुष्यर इतनी टीकाएँ भर हैं-- १ अत्ेक्सरी वास्म्ीड-दृदय! (तनि्ग्रयी) स्यास्पा। उमके छिप्परी विशषम'कनी दीफ़ा स्यभवाभाज॑शी रामासणवालग निजय स्पाएश धरीभपणप दीक्षितेग्रदी भौ इसी मामी एक अर्य स्पास्प्य ( जिसमे टसहीसे रामागणत्रों परिबपरक ठिद्ध हिपा है 3 प्रथशमुजुम्दसूरिरी शम्पपजमूत्रत प्मास्था एर्व एप्पल एणओी एु२दिरी री ७ ६ इज़रर प्ण कृष्णणाचातीने भअगनी पुल$ दिखी भाद क्वात्ताल सेलत लिरेमए मे दर ए । रौर्यपोदा शस्स प तिश्य है। झिनक केल्कफों पा पता सही है। उद्दाएरभाम-अपृरक्‍़तर, रामावजखरदौपिया मुए्दाब्य वित्तरक्रिती विषम्मनरप्निनी भ्यदें । उस्सेने अर धााशबाप से राम्यपंससारमप्र६ रेमगममस-वी विपपफ्दाये कया 7 गुनिई गाप्रीरी क्स्पपस्‍्थितरा सकयबाएँगी ग्रपाधद धरिषा पेध्यपा के सम्यदतडपरायियश श्या




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