कबीर जीवन और दर्शन | Kabir Jivan Aur Darshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कबीर का जीवन कवीरदास के व्यक्तित्व और छृतित्व को उनके जीवन ओर दर्शन को वास्तविक रूप में समझने के लिए थिशेष रूप से उनसे पूर्व और उनकी समकालीन राजनीतिक सामाजिक एवं धार्मिक परिस्थितियों को जानना आवश्यक है उनकी प्रतिभा में पूर्ण मौलिकठा रहते हुए भी उतके जीवन और दर्शन के निर्माण में उन्हें प्राप्त परम्पराओं का सद्गुरु की प्रेरणा का और अपने समय के समाज- जीवन के प्रतिक्रिया का प्रत्यक्ष या परोक्ष श्रभाव निश्चित रूप से देखने में आता है। (१) कबीरदास-पुबं परिस्थितियां शुद्ध ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर भारत के मध्ययुग की धार्मिक परि- स्थितियों के विश्लेषण में ५वी से १६वी शती का समय महत्त्वपूर्ण माना जायगा। परन्तु ऐतिहासिक तथ्य मानव के मत को विशेष दिशा में भोडकर बहुत दूर तक अपना प्रभाव डालते हैं । इस हृप्टि से घामिक प्रवृत्तियों की प्रधानता से मध्य- युग वा समय १८वीं शती तक मानना उचित प्रतीत होता है। धर्म के प्रति आधुनिक मनोवृत्ति के दर्शत १८वीं शती के बाद होते हैं । देश की राजनीतिक परिस्थितियाँ इन धामिक प्रवृत्तियों के लिए विशेष रूप से जिम्मेदार रही । काव्य नाटक शिल्प संगीत ज्योतिष आायुर्वेद भादि क्षेत्रों में भारत पिछड़ा रहा परन्तु भगवदूभक्ति के क्षेत्र में वह आगे रहा । घामिक परिस्यिति--भारत में प्रथम शताब्दी के बाद धर्मसाधना एवं दर्शन का महत्वपूर्ण साहित्य निमित हुआ 1 इन घाशिक एवं दार्शनिक ग्रंथों के निर्माण की प्रेरक शक्ति उस समय देश में प्रवतित एवं नवोदित विभिन्न सम्प्रदाय थे । ये प्रवृत्तियाँ प्रारम्भ से ही क्रांतिकारी और जातीयता के प्रति नया हष्टिकोण देनेवाली होने से नवीन उत्साह और जोश से पूर्ण थी । उस समय भारत के उत्कर्ष के लक्षण व्यक्त हो रहे ये पतन की कोई संभावना न थी । छठी शताब्दी के दाद धर्म-प्रवृत्तियों में नवीनता आई। उन पर तांपिक प्रमाव स्पष्ट दिखता था | इस प्रभाव से श्ाह्मणधर्म बौद्धघर्म और जैनधर्म भी




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