श्रीमद् अमरसूरि काव्यम् | Shreemad Amarasuri Kavyam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
274
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( २५ )
कि मुझे इतने धन की आय का विश्वास नही था | किन्तु अब क्या होता है ? उस
ब्त्याख्यान के फलस्वरूप सीमा से अधिक आय का दान, पटवा साहब की हवेली
पर होने लगा | पटवा साहव ने स्वय- जहाँ आचायंश्री विराज रहे थे, वहाँ पहुँच कर,
दर्शन कर वन्दना करते हुए श्रावको के सम्मुख अपनी बात को प्रकट किया।
आगे किशनगढ़, अजमेर स्पर्श करते हुए आचार्यश्री जब चण्डावल पधारे
तो फिर जैनयतियो में हुल-चल पैदा होने लगी । क्योकि आचार्यश्री की कीति-
पताका सारे मव्धर-प्रदेश में लहराने लगी थी। अब करे भी तो क्या करे ? ये
आचायेंश्री तो मरुभूमि पर तूफान होकर चढ़े ही चले आ रहे थे । मरता क्या नही
करता ? इसलिए उन्होने सोचा कि न रहे बाँस, न वजेगी वाँसुरी। अत आचार्यश्री
के जीवन की समाप्ति की योजना स्थिर की गई । किन्तु काम भी हो, और मालूम
न हो--इस नीति के अनुसार उन्होने आचायेश्री की भाव-मक्ति का सहारा लिया।
और सोजत नगर को उन्होंने योजना को मूर्तरूप देने का स्थल चुना ।
विहार करते हुए आचायंश्री जब दोपहर समाप्त होते होते सोजत पहुंचे
ही थे कि ये वने-वनाए भक्त सामने आए । वन्दना आदि के पीछे आचार्यश्री को
मुनिमण्डल के साथ ठहराने की चर्चा करने लगे। और इधर-उधर के स्थानो का
नाम लेकर सबसे वढिया स्थान अपनी योजना के अनुसार एक मस्जिद, जो कि
जिन्द के रहने की वजह से उजडी पडी थी, आचार्येश्री को सुखसाता का स्थान
बताकर जवरन टिका दिया । किन्तु आचायंश्री इन को ताड गए कि आखिर मुझे
मूनिमण्डल के साथ किसलिए ठहराया जा रहा है। साथ ही वे यह भी बताना
चाहते थे कि कुछ भी करलो, किन्तु ये तुम्हारे हथकाण्डे कभी सफल नही हो
सकेंगे । क्योकि उनको अपने ऊपर विश्वास था। सच्चे तपस्वी और साधक मे
अपार आत्मवल होता है । वह किसी भी वाधा का डट कर सामना कर सकता है।
योजना के अनुसार वे कृत्रिम भक्त मुनिमण्डल के साथ आचाय॑ंश्री को
मस्जिद मे ठहरा कर एक-एक करके सटक गए । इधर आचार्यश्री अपने मुनियो
के साथ अपने सायन्तन कृत्य के सम्पादन मे सलग्न हो गए । धीरे-धीरे सायन्तन
कृत्य भी पूर्ण हुए । गुरुसेवा के पश्चात् मुनिजन भी रात्रि अधिक होने पर अपने-
अपने स्थान पर जाकर सो गए , किन्तु आचाये श्री अकेले अपने ध्यान मे मग्न थे ।
आधी रात वीती होगी कि जिन्द ने अपना उपंद्रव प्रारम्भ किया जिन्द इस बात
पर क्रुद्ध था कि आप सब मेरे स्थान पर आकर क्यो ठहरे हैं ? उत्तर न मिलने
पर क्रुद्ध जिन्द ने आचार्यश्री के ऊपर अनेक शारीरिक वल प्रयोग किए । किन्तु
आचार्यश्री अविचल शान्तमाव से वीजसहित मन्त्र-जप मे ही सलग्न रहे।
जिन्द इस मस्जिद से ठहरने वालो को सदा-सदा के लिए सुलाता आ रहा था ।
किन्तु आचार्य श्री के सामने उसकी कुछ भी नहीं चल रही थी। वह अपनी मनमानी
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