अपने को समझें भाग - 3 | Apane Ko Samajhen Bhag - 3

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Apane Ko Samajhen Bhag - 3  by शान्ति चन्द्र मेहता - Shanti Chandra Mehata

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उनके ज्ञान और कर्म को अपने अन्त करण मे उतारने लगता है तब तो उसके भीतर बाहर सब और शान्ति विराजमान हो जाती है। वह आत्म तृप्ति से आनन्द विभोर बन जाता है। श्रेष्ठ सन्‍तो के समागम का सत्प्रमाव अतुलनीय होता है। साधु के साथ सम्पर्क . साधुता की ओर प्रयाण जो सच्चे मन से साधु के सम्पर्क मे पहुँचता है और साधुता के स्वरूप को परख कर अपने जीवन मे परिवर्तन लाता है, वह अवश्य ही साधुता की ओर प्रयाण कर देता है। जब प्राकृतिक तत्त्वों के वास्तविक सम्पर्क मे भी शान्ति और आनन्द का अनुभव होता है तो सोचिये कि उस बाहरी आनन्द की तुलना मे सन्त समागम से मिलने वाला आत्मिक आनन्द कितना गहरा और कितना सुखदायक होता है ? कवि का सकेत है कि- परिचय पातिक घातक साधु शु रे, अकुशल अपचय चेत। ग्रथ अध्यातम श्रवण मनन करि रे परिशीलन नय हेत।। कितनी आध्यात्मिक विज्ञान की बात इसमे कही गई है ? साधु से परिचय- साधु से सम्पर्क पाप का घात करने मे एक अमोघ उपाय सिद्ध होता है। यदि सच्चे सत के पास कोई पहुँचेगा तो उसके दिल का नक्शा बदले बिना नही रहेगा। वह उस त्यागी को भी देखेगा तथा अपने को भी देखेगा और सोचेगा कि ये कहॉ है और मै कहाँ हूँ ? उस चिन्तन मे उसको दिखाई देगी उसकी अपनी अन्तर्वृत्तियाँ कि वे सन्त की त्यागमय वृत्तियो की तुलना मे कितनी दलित बनी हुई है ? साधु के साथ सम्पर्क का ऐसा ही अनुपम प्रभाव पडता है। कल दीक्षा-स्थल पर आपने देखा होगा कि दीक्षित होने वाली आत्मा जब जनता के समक्ष खडी हुई तो उस वक्त उसके मन मे क्या कुछ आन्दोलन चल रहा था और कैसी भाव भगिमा उठ रही थी ? जब उनके परिजनो को देखा होगा तब दर्शकों के मन मे कितनी उथल पुथल मची होगी और किस प्रकार की भावनाओ की लहरे जगी होगी ? क्या आपके दिल मे नही आया कि कहाँ तो छोटी से छोटी चीजो का त्याग करने मे लोगो को हिचकिचाहट आती है और कहॉ वह आत्मा सारे परिवार का मोह ममत्व त्याग कर साध्वी बन गई ? आपने अपने को समझे / 23




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