षट्खंडागम | Shatkhandagam

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Shatkhandagam by हीरालाल जैन - Heeralal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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है पट्खंडागमकी प्रस्तावना लोकाम्बिकाके पृत्र तथा यदुवंशी राजा नारसिंहके मंत्री कद्दे गए हैं। इन यादव व दोय्सलवंशीय राजा नारधिद्द तथा उनके मंत्री हुल्लराज या हुल्लपका उल्लेश्व अन्य अनेक शिलालेखोंमें भी पाया जाता है, जिनसे उनकी जैनधर्म में श्रद्धाका अच्छा परिचय मिलता है। (देखो जैन शिलालेख संप्रह, भू. पर. ९४ आदि ) | पर उक्त विषय पर प्रकाश डालनेवाढा शिलालेख नं० ३९ है जिसमे देवकीरत्तिकी प्रशस्तिके अतिरिक उनके स्वगंत्रासक्ा समय शक १०८५ सुभानु संबत्सर आषाढ चुक्क ९ बुधवार सूर्योदयकाछ . बतलछाया गया है, और कहा गया दे कि उनके शिष्य डक्खनंदि, माधवचन्द्र और त्रिमुवनमछने गुरुभाक्तिसि उनकी निषथाकी प्रतिष्ठा कराई । देवकीरति पद्मनन्दिध्ते पांच पीढी, कुलभूषणसे चार और कुलचन्द्रसे तीन पौंढी पश्चात्‌ हुए हैं | अतः इन आचायोंको उक्त समयसे १००-१२५ वर्ष अर्थात्‌ शक ९५० के लगभग हुए मानना अनुचित न होगा। न्यायकुमुदचन्द्रकी श्रस्तावनाके विद्वान्‌ छेखकने अल्यन्त परिश्रमपत्रंक उस प्रन्यके कर्ता प्रभाचन्द्रके समयकी सीमा इस्त्री सन ९५० और १०२३ अर्थात्‌ शक ८७२ और ९४५ के बीच निधारित की दे । और, जैसा ऊपर कद्दा जा च॒का है, ये प्रभाचन्द्र वे द्वी प्रतीत होते हैं. जो लेख नं० ४० में पद्मनन्दिके शिष्प और कुछ्मृषणके सधम के गए दें । इससे भी उपयुक्त कालनिणंयकी पुष्टि द्वोती दे | उक्त आचार्योके कालनिर्णयमें सहायक एक और प्रमाण मिलता है | कुलचन्द्रमनि के उत्तराधिकारी माघनन्दि कोल्लापुरीय कद गये हैं | उनके एक गृहस्थ शिष्य निम्बदेव सामन्‍्त का उलछेख मिलता है जो शिलाद्वार नरेश गंडरादित्यदेवके एक सामन्‍त थे | शिलाह्ार गंडरादित्यदेवक्रे उछेख शक से. १०३० से १०७५८ तक के लेखोंमें पाये जाते ढँ । इससे भी पूर्बोक्त कालनि्णंयकी पुष्टि होती है । पद्मनन्दि आदि आचायोंकी श्रशस्तिके सम्बन्ध अब केवल एक ही प्रश्न रद्द जाता है, और बढ यद्दध कि उसका धवलाकी प्रतिम दिये जानेका अभिप्राय क्या है ? इसमें तो संदेह नहीं कि वे पथ्य मृडविद्रीकी ताडपत्रीय प्रति हैं और उन्हींपरसे प्रचालेित प्रतिलिपियोंमें आये हैं । पर वे धवलाके मूल भश या धवलाकारके लिखे हुए तो द्वो ही नहीं सकते | अतः यह अनुमान होता है कि वे उत्त ताड़पत्रवाली प्रतिके लिखे जानेके समय या उससे भी पूवेकी जिस प्रति परसे वह लिखी गई द्वोगी उसके लिखनेके समय प्रक्षिप्त किये गये होंगे | समबतः कुछभूषण या कुडचन्द्र सिद्धान्तमुनिकी देख-रेखमें द्वी वह्द प्रतिलिपि की गई द्वोगी | यदि विधमान ताडपन्न की प्रति लिखनेके समय ही वे पथ ढाले गये हों, तो कहना पड़ेगा कि वह प्रति शककी दढ्षबीं १. जैन शिलालेखसंप्रह, लेख न॑, ४० २, 5प्रर8०४५ 32801 ह18677009 ० ६0०॥89५7,1॥ (ाद्योभ1'5 509016010४]) ६6907 ०७ 01189 प7 न्यायकुदुदचम्द्र, भूमिका पृ. ११४ आदि,




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