श्री - जीवाभिगमसूत्रम् भाग - 3 | Shri Jivabhigam Sutram Bhag -3
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
115 MB
कुल पष्ठ :
1592
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रसेययोतिका दीक! प्र वे उनदे खू.५४ वनषण्डंगत वाप्यादीनां चर्णनम ७
खुड॒डियाओ वाबीओं बदयः छुद्राः श्ुद्रिकाः-लघबों लघव इत्यर्थः वाप्य:
चतुस्ताकारा;, पृक्खरिणीओ' पुष्करिण्य+-बृत्ताकारा; यद्वा पुष्कराणि-कमलानि
विध्न्ते यासु ता; पृष्करिण्यः 'दीहियाओं दीधिका;-निम्नरसहिता वाप्य:
सारिण्य; 'गुंनालियाओ' गुझ्लालिका:-वक्रा; सारिण्य एव ग़ुज्ञालिका। सरसीओ'
सरांसि वहूनि केवलानि पुष्पावक्रीर्णानिं, सरपंतियाओं सरः्पंक्य/-वहूनि
सरांसि एकपक्त्या व्यवस्थितानि सरःपंक्तिस्ता एवं वहून्यः सरःपंक्तय। सर-
सरपंतीओ” सर;सरः पड़न्तयः येषु सरस्सु पंकया व्यवेस्थितेषु कूपोदर्क प्रणा-
छिकया संचरति सा सरः सरः पंक्ति! ता एवं बहयः सरः सर; पह़क्तय), “विल-
पंतीओं विलपरक्तयः, विछानीव बिलानि-कूपा स्तेषां पहक्तयो विल१डक्तय३,
एताश्र सर्वा; कथ भूतास्तत्राइ-अच्छाओं इत्यादि, अच्छाओं अच्छाः-
रत... -ननननकनमननननकान नमन निनननपानननननननीनन न नव नमन नव नमन नी नमन मनन भनीनवननननीनननन चीनी नी की न नो ोोोाननना ऋ::पफफ ल्न्ै 5 5: अ़मरारुयपयत5 या
'बहवे” अनेक 'खुड्डा खुड़िडियाओ' छोटी २ 'वावीओ पुक्खरिणीओ
गुंजालिथाओं, दीहियाओ सरसीओ सरपंतियाओ, सरसरपंतीओ'
चौख टीवापिकाएं हैं, जगह जगह अनेक गोल आकार वाली या
पुरकरोंवाली, पुष्करिणियां हैं। जगह जगह झरनों वाली वावडियां
हैं, जगह जगह टेडे मेडे आकार वाली वावडियां हैं जगह जगह
पृष्पावकीर्ण अनेक तालाव है, जगह जगह अनेक सरः पंक्तियां हैं एक
पंक्तिसे रहे हुए अनेक तलावों को सरः पंक्ति कहा गया है-ऐसी
अनेक सरः पंक्तियां चहां पर है जगह २ अनेक सर: सर पंक्तियां हैं-
पंक्तियां से दयवस्थित जिन तालाबों में ऋुए का पानी नालियों द्वारा
लाया जाता है उसका नाम सर/ सरः पंक्ति है, ऐसी सरः सर:
पंक्तियां वहां पर अनेक हैं 'विलपंतियाओ' जगह कुओं की पंक्तियां हैं
ये सब जलाशय 'अच्छाओ सण्हाओ' आकाश और स्फाटिककी तरह
खुड्खुड्डियाओ! नानी ११९७िये। “पुक्खरिणीओ गुंजालियाओ दीहियाओ सरसीओ
सरपंतियाओ, स॒रसरपंतियाओ! थार भूणिया बाषे। छे, स्थणे स्थणे रने॥्र जाण
जाडारवबाणी जथवा पुष्डरेवबाणी थष्थरिणिये! छे, स्थणे स्थणे जरणाण्यिवाणी
वाबे। छे, स्थणे स्थणे वांडायुदआा जाड्ारवाणी वावडिये। छे, स्थणे स्थणे धुष्पेथी
*अयेक्षा मने॥ तणावे। छे, स्थणे स्थणे जने४ सर पाह्ितये। छे गड पप्ित
भां रखा जने४ तणावानी पप्िने सरः्पाध्ति $डे छे, जेषी मगे$ सर:
पाहिये। वां णे वनणअ्भां छे, सथणे स्थणे गने॥ सरःसरःपम्ितथे। 8. ०?
पित जद्ध तणावामां जवाब पाणुी नणिये। द्वारा क्षाववार्मा जावे ते नाभ
सरःसुरःपाधित छे, जेपी ने; सरःसरःपाइितये। ले बन णउुमां छे, 'विल-
पंतियाओ' स्थणे स्थणे इवाणे।नी पहितये। छे, जा जधा ०क्षाशये। 'अच्छाओं
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