मृत्युंजय रवीन्द्र | Mrityunjay Ravindar

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Mrityunjay Ravindar by हजारीप्रसाद द्विवेदी - Hajariprasad Dwivedi

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हजारीप्रसाद द्विवेदी (19 अगस्त 1907 - 19 मई 1979) हिन्दी निबन्धकार, आलोचक और उपन्यासकार थे। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म श्रावण शुक्ल एकादशी संवत् 1964 तदनुसार 19 अगस्त 1907 ई० को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के 'आरत दुबे का छपरा', ओझवलिया नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री अनमोल द्विवेदी और माता का नाम श्रीमती ज्योतिष्मती था। इनका परिवार ज्योतिष विद्या के लिए प्रसिद्ध था। इनके पिता पं॰ अनमोल द्विवेदी संस्कृत के प्रकांड पंडित थे। द्विवेदी जी के बचपन का नाम वैद्यनाथ द्विवेदी था।

द्विवेदी जी की प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल में ही हुई। उन्होंने 1920 में वसरियापुर के मिडिल स्कूल स

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ड प्रयाग में कवि रवीन्द्र सन्‌ १९१४ वे लीतकार मे एव वार बविवर रवाद्वनायथ प्रयोग गये थे । वहाँ वे प्राय एवं मास रह। इस बीच उहांव चार कविताएँ टिखा जो वलाका' म एक ही जगह सग्रहीत हैं। य चारा कविताएँ बडा लोक प्रिय हो गई हैं। इनम सवस अधिव' प्रचार हुआ है ताजमहर बारी कविता का । यह कविता है भा वस्तुत इसा मोग्य। ताथराज प्रयाग मे बब्बर भारतेश्वर चाहजहा वे प्रम वे स्मारत्त शारमहल ताजमहर को रूध्य बर वे रिखी गई बवि-सम्राट वी यह कविता सचमुच ही कविताआ की रानी हुई है । कवि न ताजमहल का एक ही हारा मे इस यथायरूप मे चित्रित कर लिया है वि उसस अधिक बह सकता दायट सम्भावना का सीमा के बाहर ह--त्रम कहना अनुचित-- है. सम्राट कवि एइ तब दृदयर छवि एइ तव नव मबदूत अपूब अदूभुत ' कविकुए-गुरु कालिदास व मेघदूत से तुटना करक कवि न ताजमहल के बारे म सत्र बुछ वह लिया है। उस अद्भुत काय क मत्टात्राता का प्रत्यक पटवि तप विरही विश्व की अपार बदना के भार से कठात है । कितना विश्ाछ अनुभूति का केद्र था वह कवि का हत्य | और ताजमटल। संम्याट बद्ि वे हृत्य का वह चित्र ?े यह ता उम महान्‌ हल्यप्रम पारावार वे गम्भार आयय वी एप झर्यमात्र है--शुधू एक विन्दु नयनर जल !




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