आधुनिक मनोविज्ञान | Adhunik Manovigyan

Adhunik Manovigyan by लालजीराम शुक्ल - Laljiram Shukl

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला प्रकरण मन का स्वरूप मनोविज्ञान का प्रारंभ मनो हि जगतां कतूं. मनो हि पुरुष स्मृतः स्वरूप॑सर्व॑कतृत्व स तत्व मनसो मुने--योगवालिष्ट भारतवर्ष में मन का श्रध्ययन बहुत पुराने समय से होता श्राया है । योगवासिष्ट श्रौर बौद्ध-दशन की विभिन्न शाखाश्रों में अभी तक जो विचार किया गया है वदद इतना गंभीर श्रौर मौलिक दै कि संसार की सभी श्राध्या- त्मिक चिन्तन करनेवाली जातियों को उनसे मददत्व का प्रकाश मिल सकता है। पश्चिम में मन का श्रध्ययन यूनानी लोगों ने किया था । इस अध्ययन का नाम उन्होंने मनोविज्ञान श्रथवा श्रात्मज्ञान ( साइकालोजी ) रखा या । पर मध्यकालीन यूरूप में इस अध्ययन का छास हो गया । यूरूप में फिर से मनोविज्ञान का अध्ययन झाघुनिक युग के साथ-साथ होना प्रारंभ हो गया । इस श्रध्ययन को श्रागे बढ़ानेवाले प्रारंभिक व्यक्ति दार्शनिक थे। दशन की बातों को समभकने के लिये ही उस समय मनोविज्ञान का जानना श्रावश्यक समझा जाता था । लाक बकले द्य म श्रादि मद्दाशयों ने मौलिक मनोविज्ञान के सिद्धान्तों का प्रचलन किया । पर ये लोग दार्श- निक थे श्रौर अपने दाशनिक सिंद्धान्तों की पुष्टि के लिये उन्होंने मन की क्रियाओं का श्रध्ययन करके उनपर प्रकाश डाला है । 7. दम बिस रूप में मनोविज्ञान को देखते हैं वह लगभग दो .सौ बूं्ष ही पुराना है । कहा जाता है कि यहदद विज्ञान सभी प्रकार के विज्ञानों में नया




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