मानसिक आरोग्य | Mansik Arogya

Mansik Arogya by लाला जी राम शुक्ल - Lala Ji Ram Shukl

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द्द न विषय प्रवेदा मैटिक परीक्षा पास कर ली। पिता केवल हिंदी के ही ज्ञाता दें साधारणत यदि देखा जाय तो ऐसे पुत्र को पाकर पिता को बड़ी . प्रसन्नता होनी चाहिये थी । परन्तु ऐसा न होकर उल्टा ही हुआ | पुच की सफलता पिता के मन में शांति उत्पन्नन कर अशांति का कारण बन गई । लड़के का कहना हे कि जब तक वह घर में रहता है तब तक घर में माँ बाप के बीच कगड़ा बना रहता है शोर इस झगड़े का प्रधान कारण वह लड़का ही होता हे । पुत्र की भूलों के कारण पिता सां को डॉटते दपटते अथवा सारते पीटते भी हैं । उक्त पारिवारिक स्थिति मानसिक रोग की स्थिति को चित्रित करती है। यदि पिता को मानसिक सास्य प्राप्त हो जाय तो न केवल _ उसी का जीवन सुखी हो वरच घर के सभी प्राणियों का जीवन सुखी हो जाय । यह मानसिक रोग पिता के सन में अनेक प्रकार की अवांछ- नीय सानसिक-प्रन्थियों के कारण उत्पन्न होता है । फिर जैसा पिता होता है वेसा ही पुत्र भी बन जाता है । मानसिक रोग संक्रामक होते हैं . झौर पिता से पुत्र पर परस्परागत जाते रहते हैं। यदि हम एक ही . व्यक्ति को मानसिक-झारोग्य प्रदान कर सके तो हम समाज का भारी . कल्याण करेंगे । इससे न केवल उस व्यक्ति के वतेमान संबंधियों का _ जीवन सुखमय बन जाये वरन्‌ इसकी सन्तान मी मानसिक आरोग्य - को आप करने से समय हो 1 _... जिस अकार सनुष्य के पारिवारिक जीवन को सुखी बनाने के . लिये सानसिक आारोग्य क्ली झावश्यकता है इसो प्रकार सम्पूर्ण समाज . को सुखी बनाने के लिये समाज के नागरिकों में मानसिक आरोग्य.. _ की आवश्यकता है । स्वस्थ समाज स्वस्थ व्यक्तियों का बना होता है । _ जिस समाज के कोगों में किसी विशेष प्रकार की सानसिक अ्न्थि .. रहती है उस समाज के लोगों में शुद्ध निरपेक्ष रूप से चिन्तन करने की. . शक्ति नहीं रह जःती । उनवी दृष्टि दूषित हो जाणी है। वे संसार की घटनाशों का दि शेष प्रकार को थे लगाने लगते हैं । जो राष्ट्र बहुत दिनों नरक दूसरे राष्ट्र की गुलामी करता रहता है उसमें झपने श्रापको ऊँचां




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