साहित्य दिवाकर भाग ४ | Sahitya Diwakar Bhaag 4
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
254
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about विश्वंभर नाथ मेहरोत्रा - Vishvambhar Nath Mehrotra
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १७ )
मिल छुकने पर उन्हें महल में ले जाकर मणि-जढ़ित सुवर्ण की
चौकी पर बैठाते हैं। ]
श्रीकृष्ण--
ऐसे विहाल विवायन सो भए,
कंटक-जाल लगे पुनि जोए।
हाय महा दुख पायो सखा,
तुम आये इते न किते दिन खोए ॥
देखि सुदामा की दीन दशा,
करुना करिके करुनानिधि रोए |
पानी परात को हाथ छुओ नहि,
नेनन के जलसें पग घोए ॥
प्रश्न और अभ्यास
१-क्ृष्ण और सुदामा की कथा संक्षेप मे बताओ।
२-मित्र के पास जाने में सुदामा इतना संकोच क्यों करते थे ?
३-कृप्ण-सुदामा चरित्र से तुमको क्या शिक्षा मिलती है ९
४ ४-सेंट होने पर श्रीकृष्ण ने खुदासा को क्या उलाहना दिया ?
६-दारिद, सिच्छुक, बॉभन, बित्तीत, परसपर, भगत, चामर, सुवरनमई,
भौन, धीरज--इन शब्दों के शुद्ध रूप लिखों ।
न्अनननी+नन-नननम-म-मंभ-म--मनननम-म.
२--सा० ढि० चौ०
User Reviews
No Reviews | Add Yours...