भँवर-गीत | Bambasr Geet

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Bambasr Geet by विश्वंभर नाथ मेहरोत्रा - Vishvambhar Nath Mehrotra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १२ ) ्रनेक उपाय किप, किन्तु वह किसीमें भी सफलन शो सका। शमन्त मे उसने यज्ञ के बहाने क्रूर को मेज्ञकर छष्ण शरोर वल- राम को गोकुल से मथुरा बलवा भेजा । मथुरा पर्हूचकर कष्ण जीने कसको मारकर उग्रसेन को राज्ञा बनाया भोर पने माता पिता, देवकी श्रोर वसुदेव के षंदीग्ट से क्ुाया ; कुन्जा नामक दासी की सेवा से प्रसन्न होकर उसे शपनी निमंल भक्ति की अधिकारिणी बनाया । उधर गेक्ुल में गापियां कृष्ण के विरह में श्रत्यन्त व्याकुल रहने लगीं । जब नियत समय बीत जाने पर भी कष्ण जी गेल न पर्हैचे तब ते गोप्यो ने संदेशे भेजने श्रारम्भ कर दिए । सदेशा पाकर कृष्ण जी ने परपने मित्र उद्धघ को गेकुल भेजने का निश्चय फिया । उद्धष को गोकुल भेजने म एक रहस्य था, व यह कि उद्धव को श्रपने योगश्चोर ज्ञान का बड़ा घमंड था । पने ज्ञान के श्रागे प्रेम मोर भक्ति को बह बहुत ही हेय समते थे; निगंण उपासना के प्रागे सगुण उपासना की हंसी उड़ाते थे । यह सब देखकर इष्ण जी ने साचा कि उद्धव का गवे तभौ चूर ्टोगा, जब वह गोकुल जाकर गोपियों की सची भक्ति तथा उनके निमंल मेम का ममे समभंगे । अतः उन्दों ने उद्धव का यह कहकर गोकुल मेज दिया कि षह अपने ज्ञान- मागं का उपदेश देकर गोपियों को सममा वुादं श्रौर उनके (ष्ण के ) प्रेम से उन्हे विरत करदे जिससे वे उनके विरह में दुःखी न शो सकं । र्ष्णजी के ध्रादेशायुसार उद्धव गेकुल जा पर्हुचे । गाकरुल




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