साहित्य दिवाकर भाग ४ | Sahitya Diwakar Bhaag 4

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Sahitya Diwakar Bhaag 4  by विश्वंभर नाथ मेहरोत्रा - Vishvambhar Nath Mehrotra

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about विश्वंभर नाथ मेहरोत्रा - Vishvambhar Nath Mehrotra

Add Infomation AboutVishvambhar Nath Mehrotra

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
( १७ ) मिल छुकने पर उन्हें महल में ले जाकर मणि-जढ़ित सुवर्ण की चौकी पर बैठाते हैं। ] श्रीकृष्ण-- ऐसे विहाल विवायन सो भए, कंटक-जाल लगे पुनि जोए। हाय महा दुख पायो सखा, तुम आये इते न किते दिन खोए ॥ देखि सुदामा की दीन दशा, करुना करिके करुनानिधि रोए | पानी परात को हाथ छुओ नहि, नेनन के जलसें पग घोए ॥ प्रश्न और अभ्यास १-क्ृष्ण और सुदामा की कथा संक्षेप मे बताओ। २-मित्र के पास जाने में सुदामा इतना संकोच क्‍यों करते थे ? ३-कृप्ण-सुदामा चरित्र से तुमको क्या शिक्षा मिलती है ९ ४ ४-सेंट होने पर श्रीकृष्ण ने खुदासा को क्या उलाहना दिया ? ६-दारिद, सिच्छुक, बॉभन, बित्तीत, परसपर, भगत, चामर, सुवरनमई, भौन, धीरज--इन शब्दों के शुद्ध रूप लिखों । न्‍अनननी+नन-नननम-म-मंभ-म--मनननम-म. २--सा० ढि० चौ०




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now