तत्त्वार्थ सूत्र | Tattvarth Sootra

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Tattvarth Sootra  by कैलाशचंद्र शास्त्री - Kailashchandra Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ तत्त्वाथेसृत्र का उल्लेख नहीं है । १३वीं शताब्दीके श्री भास्कर नन्दिकी सुखबोध नामकी बृत्तिमें भी सूत्रकारका उल्लेख नहीं है| हां, विक्रमकी १३वीं श्॒तंके विद्वान बालचन्द्र 'मुनिकी बनायी हुई कनड़ी टीकार्म उमास्वाति नाम दिया है ओर साथ ही णद्धपिच्छाचाय नाम भी दिया है।इस टीकाम तत्वाथसूत्रकी उत्पत्ति जिस प्रकारसे बतलाई है उसका सार १अनेकान्त? से दिया जाता हें--- 'सोराष्ट्र देशके मध्य उजयन्त गिरिके निकट गिरिनगर नामके पत्तनमें आसन्न भव्य, स्वहितार्थी, द्विज कुलोसन्न, श्वेताम्बर भक्त सिद्धय्य नामका एक विद्वान श्वेताम्बर शास्त्रोंका जाननेवाला था। उसने 'दशन ज्ञान चारित्राणि मोक्षमागः यह सूत्र बमाकर एक पाटियेपर लिख दिया । एक दिन चयके लिए श्री णद्धपिच्छाचाय उमास्वाति मुनि वहां आये ओर उन्होंने उस सूत्रके पहले 'सम्बक? पद जोड़ दिया। जब वह विद्वान्‌ बाहरसे लोठा ओर उसने पाटियेपर 'सम्यकः शब्द लगा देखा तो वह अपनी मातासे मुनिराजके आनेका समाचार मालूम करके, खोजता हुआ उनके पास पहुंचा ओर पूछने लगा--आत्माका हित क्‍या है ? इसके * बादका प्रश्नोत्तर प्रायः सब वही ह जो सवायसिद्धिके आरम्ममं आचाय पृज्यपादने दिया हे | प्रभाचन्द्राचार्यने अपने टिप्पणमें प्रश्नकर्तां भव्यका नाम तो सम्मवतः 'सिद्धय्यः ही दिया हे | किन्तु यह कथा नहीं दी | अतः नहीं कहा जा सकता कि यह कथा कहां तक ठीक है ओर इसका आधार क्या है ? फिर भी हमारे जानतेमें तत्वाथंसत्रका यही एक ऐसा टीका- कार है जिसने शद्धपिच्छाचाय उमास्वातिको सूत्रका कर्ता बतलाया है। श्रमणवेलगोलाके जिन शिलालेखोंमें गद्धपिच्छाचा्य उमास्वातिका उल्लेख है अथवा उमास्वातिको तत्त्वाथसूत्रका करता बतलाया है वे भी लगभग इसी कालके हैं । १ देखो, अ्रनेकांत, वप्र १, छ० २७० आदि |




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