गद्य रत्न माला | Gadya Ratan Mala

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Gadya Ratan Mala by गौरीशंकर हीराचंद ओझा - Gaurishankar Heerachand Ojha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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यही मेरी साठभूमि है २९ अक्सर सता जाया करती । प्राय अपार प्रसन्नता और आनदो- स्थवो के अयसर पर भी यह विचार हृदय में चुटकी लिया करता था कि “यदि में अपने देश मे होता. (२) जिस समय में बस्वई में जहाज़ से उत्तरा, मैंने पद्दिले काले-फाले कोट-पतछन पहिमे टूटी फूटी अँपेज़ी बोलते हुए मल्ाह देसे। फिर अग्रेज़ी दूकानें, ट्राम और मोटर-गाडियोँ दीस पडी | इसके बाद रवर-टायरवाली गाडियो की ओर मुँह में चुरट दाबे हुए आदमियों से मुठभेड हुई। मैंने रेल का विक्टोरिया' टर्मिनस स्टेशन देखा । फिर में रेल मे सवार द्योकर हरी-हरी पहाडियो के मध्य से म्थित अपने गाँव को चल दिया । उस समय मेरी आसो में आँसू भर आये और मैं सूप रोया, क्योंकि यह मेरा देश न था। यह वह देश न था, जिसके दशेनों की इच्छा सदा मेरे हृदय में लहराया करती थी। यह तो कोई और देश था | यह अमेरिका या इगलैंड था, मगर प्यारा भारत नहीं था । रेलगाड़ी जगलो, पहाडों, नदियों और मैदानों को पार करती हुई मेरे प्यारे गॉंव के निकट पहुँची, जो किसी समय मे फूल, पत्तों आर फलों की बहुतायत तथा नदी नालो की अधिकता से खगे की होड कर रद्दा था। में जब गाडी से उतरा, वो मेंस है ह्द्य बाँसों उछल रहा था, अब अपना प्यारा घर ५ बालपन्‌ के ध्यारे खायियों से मिर्ँगा मैं. > 4




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