सूजान | Suzan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
140
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)घुजान २३
या कहीं जाना है ?? निर्मन्ना ने प्रग्त किया 1
“हाँ ! आज दरवार में झत्य काया विशेष आयोजन है। तू जल्दी से
नाश्ता तैयार कर दे । भोजन वापसी में होगा ॥!
'अच्छी वात है। कहकर निर्मला तैयारों में लग गई ।
स््वान-ध्यान के पश्चात् मुजान ने जल्दी-जल्दी कुछ खाया और
अुल्भार कष्ष में जा वेठी । अनुरूप शुद्भार विया | आज ही तो शड्भार
में उसका मन लगा । बग्घी बाहर लगी और निर्मला के साथ वह शाही
दरवार की ओर घल्ती | उम्तका अन्तर्मन रात के अद्मुत स्वप्न में उतना
हुआ था । बड़ी उत्कंठा से चारों ओर दृष्टि डालती रही कि अकस्मात्
कही से आनन्द दिखाई पड जाये । आज आनन्द को देखने के लिए उसका
न्तर ध्याकुल द्वो रहा था 1 उसे ऐसा लग रहा था कि यह अब वेश्या
नहीं एक सोभाग्यवती शृद्दिणी थन गई है। उसने मन ही मन निश्चय किया
कि आज का हृत्य उसका अन्तिम जृत्य होगा । आजिर वह पेट के लिए
हो तो ऐसा करती है। वह भत्ती-भाँति समझ गई कि उसके द्ृत्प पर 'बाह-
वाह! करने वाले सभी वासना के भूले थे। उसे सद याद आया शाह के
हरम में देगमों फी कतार लगी हुई थी फ़िर भो शाहंशाह उसे अपनी
बाँह्ों मे समेटने के लिए उन््मत्त हो उठते थे । यह तो सुजान हो थी कि
उनके बासनाजाल से बाल-बाल बचती थी । इन सब में एक ही ऐसा
घरिधवली मनस््वी था जिसने सुजान की आत्त्मा से निष्कपट अनुराग
रखा । वह है मेरा आरनन््द । जैसा नाम वैसा ही गुण । आज तो मैं केवल
अपने आनन्द के लिए नाचूंगी | फिर यदि आनन्द चाहेगा तभी मेरा छृत्य
होगा अन्यथा महों | आनन्द वासना के कितनी दूर है।
बग्पी शाही दरवाजे पर रुकी । प्रहरी ने अन्दर ध्नाँक कर देखा ओर
आगे बढ़ने का संकेत दिया । निर्मला ने स्वामिनी को उतारा । सुजात
को देखते ही सबके मुखमण्डल चमक उठे । दरवार यचाखच भरा था ।
शूर-सामन्तों के अतिरिक्त विशिष्ट नगर निवासी थरेष्ठो आदि भी नृत्य
का आनन्द छूटने के लिए बैठे थे । सुजान महफिल में पहुँची । शाहंशाह
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