एक कमरे की कहानी | Ek Kamre Ki Kahani

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Ek Kamre Ki Kahani by यादवेन्द्र शर्मा ' चन्द्र ' - Yadvendra Sharma 'Chandra'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रे१ दिलशोइत ते बड़ी तटस्पता से अपनी माँ और बहू को देखा । खाद में बह इम्दिया सं बोला इम्दिश तुम्हें माँ के साप ऐसा सबक ली करता चाहिए | आशिर बह इय सबकी माँ है। ०जो माँ अपना हतथा थ रख सके उसके साथ अच्छा स्मकट्टार पकौस कितते दिन तक करेया ? इस्दिया कौ आँख फ्रेश सी । माँ की भ्राँखों के साये युस्‍्ते की शु जब छा ययी। उपध्मे बपती आँशों को पोष्न मौर मिच्रमित्रा कर कहा “देखते भपनी हीर की खबान को कँसो कंचो सी चत रही है? सुत रहे भिसोचन अपनी इस दिसोशान को समझा दे बर्ना यैं कमी जमुगा में &र ररूगौ। जिशोचस ने इम्दिरा को माज्ा मरेस्वर में कहा 'तू चुप रह इह्िए ) माँ छो बूछ मी रूह दे उठे पूरा झूर दिया कर, इसका कहा सुना बुए मत मामा कर |! 'बरे जे रे पुत्तर एसे माप मरे रुह्ठां? यदि मैं ही कर्म झली निरमागी गई होती का बर्यों झुआ पाकिस्ठान बहता ? क्यों मै अपनी इरौ-मरी यू हएपौ को छोड़ कर आती ? भर्पो मेरे बर ऐसी मु इ-फट और हविपूत्ी बहू प्रादी ? कांय को तो खोल सहीं पाती पर “जबान के सारे इरदाजे श्ाल रहे हैं। हाय मैरे मांग कब मेरै लोक जहात में दारी की आदाश यूणसी दब मेरे बंयता में 'काड़ाा! का शोता बूजेमा। इम्दिशा शिस तरह सगाड़ा बजता है. उत तरह ठड्ठाक स बोलो “प्रो मेरी कौएण्या ठाव जी पहुले अंगता बाला पर तो सो 1” “बुत रह कर अद्जुदान ! यह ठाजा मुर्ते बहीं मपने रप्मा को दे । मरे तो सात-यात अ॑यगा बात्ता डर पा जोर एक गहीं दस बोस बंसजे-हूइसे बाल ये ) मुररे दोप मत दे बहू जिस दिर मैं धलदें सितारों बा बड़ा ओड़गा शोड़ कर घायो थी छठी दिनसे छप घर जद दिपि शोर दय सिद्वि बाय करमे सदी दो समझी? बढ़ोगग हो




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