किसने कहा मन चंचल है | Kisane Kaha Man Chanchal Hai
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
284
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about आचार्य महाप्रज्ञ - Acharya Mahapragya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रतिरोधात्मक शक्ति का विकास्त संयम १९
पुदूगल स्वत. गतिशील नही है। वह दूसरे की प्रेरणा से गतिशील हैं,
इसलिये वह जीव नही है । जिसमें गति करने की इच्छा है, गति की स्वतः
प्रेरणा है, वह जीव है। एक ढेला फेंका । वह भी ग्रति करेगा । एक गोली
दागी । वह भी बहुत दूर तक गति करेगी । यह स्व-प्रेरित गति नही है । यह
पर-प्रेरित गति है। जो स्व-प्रे रित गति करता है, वह प्राणी हो सकता है ।
जीव का बहुत बड़ा लक्षण है- इच्छाशक्ति और सकल्पशक्ति | यह जीव
की पहचान है । जिसमें संकल्पशक्ति नही होती, वह जीव नहीं हो सकता ।
सूक्ष्म से सृक्ष्म जीवो में, चाहे फिर वे पृथ्वी के हो या वनस्पति के, उनमें भी
इच्छाशक्ति होती है, सकल्पशक्ति होती है ।
शक्ति का एक रूप है--सकल्पश क्ति, एक रूप हे--एकाग्रता, एक रूप
है--नियामक शक्ति ।
हमारे शरीर की शक्ति का केन्द्र है--नाडी-सस्थान । शरीर में यदि
नाड़ी-सस्थान न हो तो शरीर का कोई बहुत बडा मूल्य नही है। कुछ भी
मूल्य नही है । नाडी-संस्थान में ज्ञानवाही और क्रियावाही--दोनो प्रकार के
नाडी-मडल हैं । यदि इन दोनो प्रकार के नाडी-मंडलो को निकाल दिया जाए
तो न ज्ञान होगा और न क्रिया होगी ।
हमारी चेतना और शक्ति -“इन दोनो के सभाव्य केन्द्र इस नाडी-
सस्थान में हैं। आप यह न भूलें कि हमारे अस्तित्व के दो मूल स्रोत हैं--
चेतना और शक्ति । उनका संवादी केन्द्र है हमारा स्थूल शरीर ॥ सृक्ष्म शरीर
में जो स्पंदन होगे, उनके सवादी केन्द्र इस स्थल शरीर में हैं। बिना संवादी
केन्द्री के अभिव्यक्ति नही हो सकती । अभिव्यक्ति के लिए माध्यम चाहिए ।
क्योकि जब भीतर से बाहर आना होता है तव वह बिना माध्यम के नही हो
सकता । यह माध्यम हे--नाड़ी-संस्थान । वह ज्ञानवाही नाडी-मंडल के द्वारा
आत्म-चेतना को अभिव्यक्त करता है तथा क्रियावाही नाडी-मडल के द्वारा
आत्म-शक्ति को अभिव्यक्त करता है।
पर में काटा लगा। हाथ उसे निकालने के लिए तत्पर हो जाता है।
यह क्यों और कैसे होता है ? ज्ञानवाही नाडी-मडल इस बात को ग्रहण कर
मस्तिष्क तक पहुचाता हैं और मस्तिष्क हाथ के ज्ञानवाही तंतुओ को आदेश
देता है कि काठे को निकालो | हाथ उस कार्य में तत्पर हो जाता है ।
समूचा नाडी-संस्थाव साधना की दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।
साधक यदि नाडी-मस्थाव को नही समझाया है तो बह साथना में सफल नहीं
हो सकता ।
हम प्रत्यास्पान करते हैं। प्रत्याय्यान का अर्थ है - छोडना । इससे
संयम हो गया । या छोड़ देने मात्र से सबम हो गया ? आपने संकल्प-शक्ति
को जागृत कर लिया। आपने संकल्प कर लिया कि आज से में यह नहीं
User Reviews
No Reviews | Add Yours...