किसने कहा मन चंचल है | Kisane Kaha Man Chanchal Hai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रतिरोधात्मक शक्ति का विकास्त संयम १९ पुदूगल स्वत. गतिशील नही है। वह दूसरे की प्रेरणा से गतिशील हैं, इसलिये वह जीव नही है । जिसमें गति करने की इच्छा है, गति की स्वतः प्रेरणा है, वह जीव है। एक ढेला फेंका । वह भी ग्रति करेगा । एक गोली दागी । वह भी बहुत दूर तक गति करेगी । यह स्व-प्रेरित गति नही है । यह पर-प्रेरित गति है। जो स्व-प्रे रित गति करता है, वह प्राणी हो सकता है । जीव का बहुत बड़ा लक्षण है- इच्छाशक्ति और सकल्पशक्ति | यह जीव की पहचान है । जिसमें संकल्पशक्ति नही होती, वह जीव नहीं हो सकता । सूक्ष्म से सृक्ष्म जीवो में, चाहे फिर वे पृथ्वी के हो या वनस्पति के, उनमें भी इच्छाशक्ति होती है, सकल्पशक्ति होती है । शक्ति का एक रूप है--सकल्पश क्ति, एक रूप हे--एकाग्रता, एक रूप है--नियामक शक्ति । हमारे शरीर की शक्ति का केन्द्र है--नाडी-सस्थान । शरीर में यदि नाड़ी-सस्थान न हो तो शरीर का कोई बहुत बडा मूल्य नही है। कुछ भी मूल्य नही है । नाडी-संस्थान में ज्ञानवाही और क्रियावाही--दोनो प्रकार के नाडी-मडल हैं । यदि इन दोनो प्रकार के नाडी-मंडलो को निकाल दिया जाए तो न ज्ञान होगा और न क्रिया होगी । हमारी चेतना और शक्ति -“इन दोनो के सभाव्य केन्द्र इस नाडी- सस्थान में हैं। आप यह न भूलें कि हमारे अस्तित्व के दो मूल स्रोत हैं-- चेतना और शक्ति । उनका संवादी केन्द्र है हमारा स्थूल शरीर ॥ सृक्ष्म शरीर में जो स्पंदन होगे, उनके सवादी केन्द्र इस स्थल शरीर में हैं। बिना संवादी केन्द्री के अभिव्यक्ति नही हो सकती । अभिव्यक्ति के लिए माध्यम चाहिए । क्योकि जब भीतर से बाहर आना होता है तव वह बिना माध्यम के नही हो सकता । यह माध्यम हे--नाड़ी-संस्थान । वह ज्ञानवाही नाडी-मंडल के द्वारा आत्म-चेतना को अभिव्यक्त करता है तथा क्रियावाही नाडी-मडल के द्वारा आत्म-शक्ति को अभिव्यक्त करता है। पर में काटा लगा। हाथ उसे निकालने के लिए तत्पर हो जाता है। यह क्यों और कैसे होता है ? ज्ञानवाही नाडी-मडल इस बात को ग्रहण कर मस्तिष्क तक पहुचाता हैं और मस्तिष्क हाथ के ज्ञानवाही तंतुओ को आदेश देता है कि काठे को निकालो | हाथ उस कार्य में तत्पर हो जाता है । समूचा नाडी-संस्थाव साधना की दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। साधक यदि नाडी-मस्थाव को नही समझाया है तो बह साथना में सफल नहीं हो सकता । हम प्रत्यास्पान करते हैं। प्रत्याय्यान का अर्थ है - छोडना । इससे संयम हो गया । या छोड़ देने मात्र से सबम हो गया ? आपने संकल्प-शक्ति को जागृत कर लिया। आपने संकल्प कर लिया कि आज से में यह नहीं




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