बौद्धदर्शन तथा अन्य भारतीय दर्शन | Bauddhdarshan Tatha Anya Bharteeya Darshan Part I
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
212 MB
कुल पष्ठ :
733
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बौद्ध दर्शन तथा अन्य भारतीय दर्शोन की ६
“आदर्श सदा कारणभूत रहे हैं और इसीलिये देवताओं की भी इस भूमि पर आकर
जन्म लेने की सदा स्पृह्ठा रही है' । यहीं पर वह मध्य-देश हे जहाँ अनुत्तर
.. सम्यक् सम्बोधि की ज्योति चमकी थी । यहीं दृषद्वती और सरस्वती के बीच
का वह ब्रह्मावर्त प्रदेश है जहाँ का परम्परागत आचार विदृव के सदाचार का
पैमाना माना जाता था* । यहीं उत्तर कुरु का वह साधना-प्रधान देश है जहाँ
के मनुष्यों को शील नैसगिक देन के रूप में मिछा था३ । चेदि देश भी यहीं
था जहाँ के धर्मशील. जनपद थे और जहाँ स्वेच्छाचार में भी कहीं मिथ्या प्रराप
सुनाई नहीं पड़ता था और जहाँ सभी वर्ण अपने-अपने शर्म में स्थित थे४ई। भार-
तीय इतिहास ते एक ऐसा यूग अवश्य देखा है जो सम्भवतः भगवान् बुद्ध के.
लिये भी पुराण” था और जब मनुष्यों को केवल तीन ही दुःख थे--क्षुधा,
जआूच्छा और जरा । इसी यूग के सम्बन्ध में सम्भवतः कहा जां सकता था कि
इस देश में कोई चोर नहीं है, कोई दुराचारी नहीं हैं, कोई बाह्य शासन नहीं
2 _-घुरि नो गाद. « -
हूँ; केवल आन्तरिक धर्म ही शासन कर रहा है । इस पावन भूमि ने एक युग
... जम्ब॒द्रोप एव चिन्तामयं तत्कमें आक्षिपति, तत्र च संमुखबुद्धचेतन: पुमांइच ...
.. भूल्या जायते ।” उपर्युक्त पर “नालन्दिका' टीका; सिलाइये “बुद्ध
पत्यसो । अभिषमकोशंं ४)१०९३ असौ बोधिसत्वः अवशिष्टें कल्पशते .. .
. जम्बुद्ीप में ही जन्म छेते हैं” जातक-अहुकथा, बुद्धचर्या, पृष्ठ १ में...
उद्धत 1 न ः
। . (१) गायच्ति देवा: किल गीतकानि धन्यास्तु ते भारतभूमि भागे। स्वर्गापवर्गा- हर स
...... ढस्पद-हेतुसते भवस्ति भूयः पुरुषा: सुरत्वात् । विष्णु-पुराण शरहे।ए४ .
.... [२) सरस्वतीदृषद्वत्योदेंवनद्योयंदन्तरम् । त॑ देवति्मितं देशं बह्मावर्ले प्रचक्षते ॥
_ तस्मिन् देशे. ये आचारः पारस्परयक्रमागतः । वर्णानां सान्तरालानां स
.......... सवाचार उच्यते ॥ सनु० २।१७-१८
... . ह३) उत्तर-कुद प्रदेश के मनुष्य स्वभावतः ही सदाचारी होते थे । आचार्य
... : बुद्धघोष कहते हें “उत्तर कुरुकानं मनुस्सानं अवीतिककमों पकतिश्ील” हु
४ विसुद्धिम शो ३ ४
६४) धर्मशीला जनपदाः सुसन्तोषाइच साधवः । त ञ्र॒ सिथ्याप्रलापोध्त्र स्वैरे-
. हवषि कुतोष्त्यथा ॥ न चः पित्रा विभज्यन्ते पुत्रा गुरु हिते रताः। युज्जते - हा
पर्व, अध्याय ६३,
५) ब्राह्मण-घम्सिय-सृत्त ( सुत्त निषात २७ )
सर्वे वर्णाः स्वधर्मस्था:, . - «“ सहाभारत, आदि- रे
इलोक १०-१२ ( चित्रशाला प्रेस, पूता )
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