बौद्धदर्शन तथा अन्य भारतीय दर्शन | Bauddhdarshan Tatha Anya Bharteeya Darshan Part I

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Bauddhdarshan Tatha Anya Bharteeya Darshan Part I by भरत सिंह उपाध्याय - Bharat Singh Upadyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बौद्ध दर्शन तथा अन्य भारतीय दर्शोन की ६ “आदर्श सदा कारणभूत रहे हैं और इसीलिये देवताओं की भी इस भूमि पर आकर जन्म लेने की सदा स्पृह्ठा रही है' । यहीं पर वह मध्य-देश हे जहाँ अनुत्तर .. सम्यक्‌ सम्बोधि की ज्योति चमकी थी । यहीं दृषद्वती और सरस्वती के बीच का वह ब्रह्मावर्त प्रदेश है जहाँ का परम्परागत आचार विदृव के सदाचार का पैमाना माना जाता था* । यहीं उत्तर कुरु का वह साधना-प्रधान देश है जहाँ के मनुष्यों को शील नैसगिक देन के रूप में मिछा था३ । चेदि देश भी यहीं था जहाँ के धर्मशील. जनपद थे और जहाँ स्वेच्छाचार में भी कहीं मिथ्या प्रराप सुनाई नहीं पड़ता था और जहाँ सभी वर्ण अपने-अपने शर्म में स्थित थे४ई। भार- तीय इतिहास ते एक ऐसा यूग अवश्य देखा है जो सम्भवतः भगवान्‌ बुद्ध के. लिये भी पुराण” था और जब मनुष्यों को केवल तीन ही दुःख थे--क्षुधा, जआूच्छा और जरा । इसी यूग के सम्बन्ध में सम्भवतः कहा जां सकता था कि इस देश में कोई चोर नहीं है, कोई दुराचारी नहीं हैं, कोई बाह्य शासन नहीं 2 _-घुरि नो गाद. « - हूँ; केवल आन्तरिक धर्म ही शासन कर रहा है । इस पावन भूमि ने एक युग ... जम्ब॒द्रोप एव चिन्तामयं तत्कमें आक्षिपति, तत्र च संमुखबुद्धचेतन: पुमांइच ... .. भूल्या जायते ।” उपर्युक्त पर “नालन्दिका' टीका; सिलाइये “बुद्ध पत्यसो । अभिषमकोशंं ४)१०९३ असौ बोधिसत्वः अवशिष्टें कल्पशते .. . . जम्बुद्ीप में ही जन्म छेते हैं” जातक-अहुकथा, बुद्धचर्या, पृष्ठ १ में... उद्धत 1 न ः । . (१) गायच्ति देवा: किल गीतकानि धन्यास्तु ते भारतभूमि भागे। स्वर्गापवर्गा- हर स ...... ढस्पद-हेतुसते भवस्ति भूयः पुरुषा: सुरत्वात्‌ । विष्णु-पुराण शरहे।ए४ . .... [२) सरस्वतीदृषद्वत्योदेंवनद्योयंदन्तरम्‌ । त॑ देवति्मितं देशं बह्मावर्ले प्रचक्षते ॥ _ तस्मिन्‌ देशे. ये आचारः पारस्परयक्रमागतः । वर्णानां सान्तरालानां स .......... सवाचार उच्यते ॥ सनु० २।१७-१८ ... . ह३) उत्तर-कुद प्रदेश के मनुष्य स्वभावतः ही सदाचारी होते थे । आचार्य ... : बुद्धघोष कहते हें “उत्तर कुरुकानं मनुस्सानं अवीतिककमों पकतिश्ील” हु ४ विसुद्धिम शो ३ ४ ६४) धर्मशीला जनपदाः सुसन्तोषाइच साधवः । त ञ्र॒ सिथ्याप्रलापोध्त्र स्वैरे- . हवषि कुतोष्त्यथा ॥ न चः पित्रा विभज्यन्ते पुत्रा गुरु हिते रताः। युज्जते - हा पर्व, अध्याय ६३, ५) ब्राह्मण-घम्सिय-सृत्त ( सुत्त निषात २७ ) सर्वे वर्णाः स्वधर्मस्था:, . - «“ सहाभारत, आदि- रे इलोक १०-१२ ( चित्रशाला प्रेस, पूता )




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