शुकोक्तिसुधासागर | Shukoktisudhasagara
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
81 MB
कुल पष्ठ :
1390
श्रेणी :
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No Information available about पं. रूपनारायण पाण्डेय - Pt. Roopnarayan Pandey
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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आजकल इस स्चव्दका अचार नहीं है, एसा नहा कहा जा सक्ता। आयः
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पण्डित लोग इंच कथाको झुदाते देख पड़ते हैं न॑ परन्तु सत्त्यके अनुरोधसे
पढ़ता हैं क्रिडइस पुराणका जो उद्देश्य है सो सफ़छ होता नहीं देखा जाता।
कारण है, उनमे सुल्य कारण यही है कि दे पंडित, जो कथा छुनाते है, आय:
सर्वशात्षज्ञ न होनेके कारण इसके सावको नहीं उमा उक्ते: लत॒ुएव सुननेवालोंको भी
इसके' यथार्थ फलसे वद्चित रहना पढ़ता है। यह अनुदाद इसी लिये कियागया है कि
पण्डितजद इसके द्वारा सागवतके यथार्थ भावको समझकर उसका अचार करें।
इसके अतिरिक्त जो लोग संस्छृतज्ञ नहीं हैं वेसी इसे पढ़कर मागवतके ठोक भावको
हृदयेगस करसकें। ययप्रि इससमय भागवतके अनेक सापानुवाद होगदे हैं परन्तु
यह कहना अनुचित न होगा कवि उनमें प्रायः कठिव स्थल जेसे के तेसे छोड़ दिये गये
उनकी सरल व्याख्या नहीं की गई है । हम यह नहीं कह उक्ते इस साधारण
अनुवादसे यह कमी पूर्णतया पूरी होयई है, अधपवा यह अनुवाद सर्वोत्तम
परन्तु हाँ इतना अवश्य कहेंगे कि यथाशत्ति उक्त अभ्रावकरों सिटनेके
ही यह अनुवाद किया गया हैं-तव इसमें हम कहाँतक ऋृतकार्स्य। हो
हैं, इसका निर्णय हमारे सहदय पाठकोंपर ही निर्मर हैं। आकाश अनन्त है,
पशक्षीगण अपनी २ शक्तिके अनुसार उढ़ते हैं, वेसेही इस भागवत शाहनसे
प्रलेक विद्ञन॒का प्रयास करना है । जिसके लिये श्रीसवदाननें खयं कहा है कि में
जानता हूँ, श्रीशुकदेव जानते हैं और संजय जानते हैं या नहों-तो कुछ
विख्वित नहीं है उसके दिषयर्से यह कहना कि 'हसने पूर्णतवा समझ कर
इसका अनुवाद किया है, या यह अनुवाद सवागपू्णं और विदोष है-चाल-
झुलूम चपलतामात्न है | सनुष्यकी बुद्धि कभी अमशन्य नहीं होसकी ! सनुष्यही क्यों:
ज्रिभुवनके कती ब्रह्माकीमी दुद्धि त्तो हरिकी महिसासें मोहित हो गई थी, तव हम ऐसे
तुच्छातितुच्छ मनुष्यकीटोंकी शक्ति क्या हे और हम क्या हैं १
किन्तु ऐसा होने परसी हृपानिधि ईंश्वरकी छीला अपरम्पार है । कृपा होने
पर एक कीटसी गरइसे ददू कर कान कर सक्ता है। ऊब उस करुणानिधिकी कृपा
होने पर गूँगे लोग बोलने ऊगते हैं, ऊँपेड़े अपाहिऊ पहाड़ फौँद जाते हैं तब हस
ऐसे उुच्छ नजुष्यके द्वारा इस सुमहत्कार्यकी सम्पन्न करादेनामी उस . सहाजुमाव
परनेश्वरके लिये कोई विचिन्न वात चहा है 1 दिना इंश्वरकी इच्छा जद एक पत्ता तक
नहीं हिलता तब कौन कह सक्ता है कि बिना उसकी प्रेरणाके इस अलचुवादसें हमारी
प्रइृत्ति हुई है $ अतएव कहना पढ़ता है और सानना सी पढ़ेगा कि यह काये
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