श्रीराम चन्द्रिका | Shriram Chandrika

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Shriram Chandrika  by पं. रूपनारायण पाण्डेय - Pt. Roopnarayan Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शमचन्द्रिकों सटीक | १५ “ जनायो जता पौवेक रघुवेशिन को इतिं शेष: या अकारः अरुण पताकां 'पैक्किको. ब्णेन करि यह पदसों दूसरी श्वेतपताका पंक्तिकों अवलोकि वर्णन , लगे सो जानो भेरी करी कहे बनाई' विश्वामित्र सष्टि करन लागे हैं तब नदी बनायो है सो आकाशमें हे पुराणोक्त हे कविग्रियाहू में. कल्यो. है कि '#ऊंचे. ऊँचे- अटनि पताका अति ऊंची जनु कौशिककी कीन्‍्ही गंगं खेलें ये तरलतर । ” अथवा मेरी कहे हमारी मगिनी: मागिनीति शेष) । दिवि “कहे “दिव्यरूप कंहे खेलति है. आकाशमें कोशिकी नदी है सो. “विश्वामित्र की -भगिनी है ३८ ॥ दोहा.॥जीति जीति कीरति लई शब्नकी बहुभांति॥ पुरपर बाँधी शोभिजे मानो तिनकी पांति २६ त्रिमंगीडेद ॥ सम सब घर शोभेंमुनिमन लो भें रिपुगण क्षोमें देखिसबे। बहु दुँदुभि बाजें जनु घन गाजें दिग्गज लाजें सुनत जबे॥ जहँतह श्रुति पढ़हीं विधन न बढ़हीं जय यश मढ़ही सकल दिशा। स- . बेइसब विधिडम-बसत यथाक्रम देवपुरीसम दिवसनिशा ४०॥ तांही श्वेंतेपतांका पंक्विमें फेरिं तक है २६ द्वेलंदंकों अन्ध्रय' एक हे प्षोंमें टरतें हैं हम समथे रातिउ दिन ' देवपुरी.' सम है. यामें श्लेषाथेहू है: केसी देवपुरी ओ अयोध्या है सम॑ बरांवरि है दिन राति' जामें पंटत' बंढुँत॑ नहीं छः महीना उत्तरायण दिन रहत है -दक्षिणांयनः राति: रहते है ओ संम हे . .तुल्म आनन्ददायक है रातिउ 'दिन:जामें रात्रिहुको चोरादिको: भय नाहीं होत ओरअथे दुवो: पक्ष एकही:है ४०:॥ ; . ;““कविंकुलविद्याधर सकलकलाधर राजराज.वर वेष-ब्ने। « गएपति सुखदायक पशुपति लायक सूर सहायक कोन गने॥ सेनापति बुधजन मंगल गुरुजन धमराज़ मन बुद्धि घनी। बहु : शभ मनसाकर-करुणामय- अरु सुरतरंगिणी-शोभसनीं४१॥ फ़ेरि.फैसी है देवपुरी कवि शुक्र ओ कुलेंकहे समूह विद्याधरनके विद्या ' धर देवयोनि विशेष है ओ. सकलकंलाधर' चन्रमा आओ . राजराज झुंबेर-ये सब “धरवेष: कहे: सुंदर -वेषः कहे रूपसों वने हैं ओ सुखदायक जो' गणपति . 'गंणेश हैं औ:लायक कहे ओेए्ट पशुप्ति महादिव' हैं ओ. सूर कहे सूये ओर




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