चौबेका चिट्ठा बकिमचन्द्र | Chobey Ka Chittha

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Chobey Ka Chittha by पं. रूपनारायण पाण्डेय - Pt. Roopnarayan Pandey

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about पं. रूपनारायण पाण्डेय - Pt. Roopnarayan Pandey

Add Infomation About. Pt. Roopnarayan Pandey

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
लक १०७. यूटिलियी या पेद दशैन । अप यह सिद्ध हुआ कि पेट नामके बडे विवरमस छड्ड़ पूडी आदि भौतिक श्रदार्थोंको भर लेना ही पुरपार्थ हैे। अब इस पुरुषार्थथ साधन भी निश्चित करने चाहिए। सूनच--पहलेके पण्डितोने घुरुपार्थ पानेंके छह साधन या उपाय बतलाये हैं, यथा--विद्या, बुद्धि, परिश्रम, उपासना, बल, और छल । भाष्य--( $ ) विद्या । विद्या क्या हे, यह निश्चय करना यढुत ही कठिन है। कोई कहता है, लिस्‍्यना-पढना सीख लेना ही प्रिद्या है । कोई कहता हे, विद्याके लिए विशेष लिसने पढनेकी कोई जरूरत नहीं, पुस्तकें लिख लेन और असपार लिस ऐेना आज़ाना ही विद्वत्ताका प्रमाणपत्र हे । कोई इसमें जापत्ति करता है, कहता है, जो लिसना नहीं जानता वह असयारमे लेख ही कैसे लिफेगा ? मेरी समझमें ऐेसा तक करना ठीक नहीं । मगरका बच्चा >अण्डा फोडकर याहर निकलते ही पानीमे तैरने लगता है, उसे सीग्पना नहीं पडता । उसी तरह भारतवासियों ( विशेषकर हिन्दी भाषाके सम्पादको, आधुनिक ग्रन्थकर्ताओ ओर कवियो ) के लिए विद्या एस स्यभावसिद सहज शुण है। उन्हें दिद्या श्रासत करनेके लिए लिखने-पढनेकी जरूरत नहीं। (२ ) बुद्धि। जिस विचित्र शक्तिके ललसे आमफों इमली कर सकते हैं और रईको लोहा और लोडेको रई बना सकते है, उसे बुद्धि कहते है सूमफी सम्पदाकी तरह इसे आदमी आप ही देस सकता है, दूसरा नहीं घृथ्वी भरकी सब्र चीजोंकी अपेक्षा यह शक्ति ही जगवर्म जधिक देख पड़ती है। भैने तो कभी फ्सीकफो ऐसी शिकायत करते नहीं देखा कि मुझसे छाहि कम है। (३ ) परिश्रम | ठीक समयपर गमे गर्म भोजन करना, उसके बाद कोमल प्रिछोने पर सोना, टथा साने जाना, त्तमाखूं जछा जलाकर भूओं धार करना और जपनी या पराई खीसे प्रेमालाप करना इत्यादि पड़े पढे कामोको पूरा करना ही परिश्रम है । ( ४ ) उपासना । फ्िसी व्यक्तिके सम्बन्ध यदि कुछ|वात की जाती & तो उसमें या तो उसके ग्रुण गाये जाते हैं, ओर या उसके दोपोका चणणन होता है । किसी क्षमताशाली प्रधान व्यक्तिके सम्नस्धर्म छेसा घाताशाप होनेंम, अगर बढ़ सचमझुच दोपपूर्ण है तो उसके ठोप-कीतेनफो * निन्‍्दा ? कहते है, और यदि उससे फोई ठोष नहीं त्तो उसके टोपफीतैनको «» >> त ०




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now