सामाजिक उपन्यास | Samajik Upanyas

Samajik Upanyas by रागेय राघव - Ragey Raghav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्र-प्राजय ९६ यद्यपि ऐलिज़ाबैथ के हृदय में इन बातों से श्री डार्सी के प्रति सौहाद तो नहीं न्मा, लेकिन वह थी मज़ाकिया तबियत की लड़की । उसने अपनी सित्नों को यह वात डे मज़े ले-लेकर सुनाई । इस घटना ने उन सबका मनोरंजन किया । किन्तु इतने पर भी बिंगले और वैनेट-परिवारों में शीघ्र ही मित्रता स्थापित हो ई। दोनों के सम्बन्ध बढ़ चले । ं ः शीघ्र ही लोगों में यह प्रकट होने लगा कि चार्त्स और जेन एक-दूसरे के प्रति कर्षित थे । चाल्स की वहिनों को जेन से भी अधिक प्रिय हुई ऐलिज़ाबेथ, लेकिन श्रीमती नैट उनको एक मुसीवत नज़र आती थीं । उनकी पुत्री मेरी उन्हें नीरस लगती थी और लिडिया तथा किटी के साथ उसे भी महत्त्व नहीं देती थीं । उनकी राय में ये लड़कियां र्थ ही ही-ही करके हंसनेवाली थीं, जो अपना सारा समय पुरुषों के पीछे घूमने में व्यतीत रया करती थीं 1 श्री डार्सी के मन में कुछ और बात पैदा हो गई थी । वे ऐलिजाबैथ के प्रति बड़ी गौकस दिलचस्पी रखते थे । ऐलिजावेथ की काली आंखों में उन्हें अब भावपूर्णता दिखाई ने लगी थी और वे उसकी प्रदांसा भी किया करते थे । अब वह उन्हें अच्छी लगने लगी पी । उससे उनकी तबियत बहलने लगी थी । उसके व्यवहार में उन्हें एक ऐसी सरलता देखती जो आकर्षक थी । ऐलिजावेथ सहज थी, और उन्हें उसमें कृचिमता नहीं मिलती पी । धीरे-धीरे वातें खुलने लगीं । एक दिन विंगले की बहिन ने डार्सी से पूछा, “अब गापके लिए मैं किस दिन आनन्द मनाऊं ?”' उसने स्पष्ट ही बात में एक रहस्य का उद्घाटन करने की चेष्टा की थी । किन्तु डार्सी चौकस थे । बोले, “सचमुच ! स्त्रियों की कल्पना भी कितनी तेज़ी से उड़ती है।”” ं वात साफ नहीं हुई । . इन्हीं दिनों विंगले-परिवार में कुछ दिनों के लिए दोनों वड़ी बहिनें आई । तब वनेट-परिवार की वड़ी पुरी जेन विंगले-परिवार में मिलने के लिए गई , वहां उसे वड़े ज़ोर का जुकाम और वुखार हो आया । उसकी तबियत खराब हो गई। इस बीमारी में वह विगले-परिवार में आकर रहने लगी । श्री बैनैट ने भी ऐसी तरकीवें कीं कि उनकी वेटी विंगले-परिवार में अधिक से अधिक दिन बनी रहे । इस निवासकाल में जेन विंगले- परिवार में अधिक प्रिय हो गई और ऐलिज़ावैथ उतनी प्रिय सहीं हो सकी । विंगले- परिवार में करोलीन अवद्य उसे वहुत आकर्षक मानती थी, किन्तु श्रीमती हर्ट उसे जीभ की वहुत तीखी माना करती थीं । इन सम्वन्धों के बावजूद ऐलिजावेथ के हृदय में श्री डार्सी के प्रति पूर्वग्रहू चना हो रहा । उनके वे वाक्य उसे अभी तक याद थे । तमी वहां श्री विकह्ैम आए । वे सुन्दर थे, स्वभाव के मीठे थे । लौंगवौर्न के सबसे पास मेरीटोन नाम का एक कस्वा था । विकहैम वहां एक अफसर वनकर सैनिक रैजी- मेंट में जाए थे । उस युवक अफसर से जब ऐलिज़ावैथ की वातचीत हो गई तो, डार्सी के




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