संस्कृतिक गौरव के एकांकी | Sanskritik Gaurav Ki Ekanki

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Sanskritik Gaurav Ki Ekanki by गिरिराज शरण - Giriraj Sharan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लक्ष्मण राम लक्ष्मण राम हनुमान राम सरमा अग्नि परीक्षा / १३ विजय मानवता की जय यात्रा बने, इसके लिए जलती हुई अग्नि में प्रवेश कर सीता को अपनी पवित्रता का प्रमाण लोक को देना ही होगा । इसकी सारी व्यवस्था तुमको करनी होगी । प्रभु।मुझे ।भो 1 भीरू मत बतो लक्ष्मण ! इस कठोर बम द्वारा तुम्हे मेरे कलकित होने की आशका है । हो सकता है आनेवाले युग मेरे उद्देश्य को न समझकर मुझे क्ूरकर्मा ही कहें, पर सीता तो शील और पाविज्य का चरम प्रतिमान वन ही जायगी। राम भले ही सदोष माने जाये, पर सीता का चरिन कोटि कोटि गगाओसे भी अधिक लोक पावन बन जायगा । देव ! इस तिमम विधान में भी भगवती के प्रति अपका अनुराग व्यक्त हो रहा है। आपके विधान का रहस्य समझ सकना कठिन है। मारुति | तुम आदरपूवक देवी मंथिली को लका से ले आओ । विभीषण तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे होगे। जो आाज्ञा प्रभु | समस्त वामर सेना भी जगदम्बा के दशन पाने के लिए आदबुल है। देवी मैथिली का यह बता देना । दृब्य तीन स्थान अशोक वन । सुबण जैँस दीप्तिमान शिशपा- वृक्ष के नीचे निमित वेदिका पर देवी मैथिली अत्य”त प्रशान्त मुद्रा मे विद्यमान हैं। उनके दाहिनी और बायी ओर विभीषण की पत्नी सरमा ओर पुत्री कला खडी है। वेदिका के नीचे बहुत सी राक्षसियाँ हाथ जोड़े हुए भय भीत एव त्रस्त बेठी हुई हैं। इनवे लिए देवी सीता का दाहिना हाथ अभय मुद्रा म उठा हुआ है। परमेश्वरी | यह अशोक उपवन जो आपके नि श्वामो से स्तब्ध- दग्घ दिखाई देता था आज क्तिना प्रसन दिखाई दे रहा है । मयूरो की कैका मे क्तिना आमोद है, आपकी वेदना की अनु- भूति से मूक बनी हुई कोकिलाएँ भरी आज कितनी बावदूक हो गई हैं। चातकियों को विरह व्यथा का भो मानो अवसान हो




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